Thursday, November 20, 2008

ठंडी आँखें...


मौकापरस्त हो चुकी हैं आंखे
तलाश रहती है इन्हें...
नए-नए कुछ तमाशों की,
तड़पते-छटपटाते किसी हादसे में...
दम तोड़ती आवाजों की,
भटकती हैं यहां वहां...
सिसकती हुई भावनाओं के पीछे
एक नई खबर के लिए
दूर तक दौड़ती हैं रास्तों पर...
जबरन किसी मुद्दे के पीछे
ताकती हैं आसमान को भी...
खुद को भिगोने की ख्वाहिश में
ढूंढती हैं आसपास ही कहीं...
बेबस किस्सों के निशान
फिर नई कहानी के लिए
गमज़दा हो तो झुक जाती हैं...
एक रस्म निभाने को, क्योंकि...
मौकापरस्त हो चुकी हैं आंखे

जिम्मेदार कौन... ?


आज एक बार फिर वह कायर साबित हुआ... उसके कदम नहीं उठ सके थे... क्योंकि, वे चार लड़के घोषित बदमाश थे... क्योंकि, उनके पास रिवॉल्वर थी... क्योंकि उसके पास वक्त नहीं था... क्योंकि वह किसी और के झमेले में नहीं पड़ना चाहता था... क्योंकि, जिस युवती के साथ वो लड़के छेड़छाड़ कर रहे थे..., वो उसकी रिश्तेदार या दोस्त नहीं थी। इस घटना को उसने अपने दोस्तों के साथ शेयर किया। पुलिस और सिस्टम को गैर-जिम्मेदार बताया। कुछ दिन बाद ही शहर के एक अखबार में बलात्कार की एक खबर छपी। लेकिन आज वो बहुत रोया, छटपटाया, और... पछताया भी। इस घटना को वह किसी के साथ शेयर नहीं कर सका। आज उसने खुद को कोसा, क्योंकि पहली बार वह उस तकलीफ को महसूस कर सका था, क्योंकि... पीड़ित लड़की उसकी बेटी थी...