Thursday, August 13, 2009

खिलौना जान कर तुम तो... (दूसरा भाग)


(खिलौना जान कर तुम तो.. इस सीरीज का पहला भाग पढ़ने के लिए लिंक पर जाएं)

तमाशे से कई कलाकारों की छुट्टी हो गई। कई दिन ये खबर हवा में तैरती रही और इसी के साथ ये अफवाह भी कि.. जल्द ही कई और कलाकारों की छुट्टी हो सकती है। बेचारे.. तमाम कलाकारों में डर बैठ गया। सभी संभलकर काम करने लगे.. कुछ ऐसे भी थे.. जिन पर इसका कोई असर नहीं हुआ.. और वो पहले की तरह ही बेहतरीन तमाशा दिखाते रहे। दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी थे.. जो न पहलेकाम करते थे.. और न ही अब कर रहे थे। उन्हें यही लगता कि.. मुनीमजी और साहबजी के होते भला किसका डर। किस माई के बाप की हिम्मत.. जो उन्हें कुछ कहता। खैर, जैसे-तैसे दिन कटने लगे। पुरानी बातों को भुलाकर एक बार फिर तमाशा जमने लगा.. और कलाकार वाकई पुरानी बातें भूल गए। हालाकिं परदे के पीछे काफी कुछ घटता रहा.. अफवाहें उड़ती रहीं। इस दौरान कई कलाकारों ने तमाशे से नाम वापस लिया और उनकी जगह नए कलाकार इस तमाशे से जुड़े। खेल चलता रहा.. टीआरपी कभी गिरती.. तो कभी संभलती।तमाशा चलता रहा। कई महीने बीत गए। फिर देखते ही देखते तमाशा शुरु हुए एक साल हो गया। इस मौके पर जोर-शोर से एक गेट-टूगेदरका आयोजन भी किया गया। खूब चहल-पहल रही। वक्त बीत रहा था.. तमाशा चल रहा था। तमाशे की कमान कभी साहबजी तो कभी मुनीमजके हाथों में घूमती रहती। अक्सर कलाकारों की छंटनी की अफवाहें उड़ती रहती। इसी बीच एक और वाक्या हुआ। और वो ये कि.. कई कलाकारों की पगार बढ़ा दी गई। हालांकि समकक्ष वाले कलाकारों में कुछ की पगार बढ़ी.. तो कुछ की नहीं। एक बार फिर परदे के पीछेचर्चा शुरु हो गई। मुनीमजी और साहबजी पर भेदभाव का आरोप लगा। जिनकी पगार बढ़ी थी.. वो कलाकार अचानक सबकी नजरों में आ गए।उन्हें किसी की वाहवाही मिली.. तो किसी के ताने। अचानक काफी कुछ बदल गया उनके लिए। लेकिन कुछ दिन में फिर हालातसामान्य होने लगे। तमाशा इसके असर से अछूता था। इसलिए फिर बात आई-गई हो गई। लेकिन ये क्या एक बार फिर अचानक कुछउठा-पटक शुरु हो गई। तमाशे में हालात बदले हुए नजर आने लगे। बातें बननी शुरु हो गईं और अफवाहों का बाजार फिर गर्म हुआ।फिर कुछ होने वाला है.. किसी पर गाज गिरने वाली है.. क्या होगा.. हाय राम, ये क्या हो रहा है। ऐसा कैसे हो सकता है.. मुनीमजी और साहबजी के खबरी भी घबराए हुए थे.. क्योंकि अब कुछ भी हो सकता है। कहीं झूठ तो नहीं.. कहीं सच तो नहीं। जो होगा.. देखा जाएगालेकिन फिर भी मन में डर, घबराहट। और सबका डर रंग लाया। कोई अफवाह नहीं, कोई झूठ नहीं, सब सच। देखते-ही-देखते फिर कई कलाकारों की छंटनी हो गई। लेकिन इस बार इसका असर ज्यादा हुआ। तमाशे में मातम छा गया.. और तमाशे की टीआरपी अचानक गिर गई। बचे हुएकलाकारों में नाराजगी और गुस्सा था। लेकिन किसे कहें.. कैसे कहें। तमाशे के दो पाटों के बीच कई जिंदगियां पिस रही थीं। फिर भीसब खामोश.. खुद को बचाने की जुगत में।

..जारी है
अनु गुप्ता
14 अगस्त 2009