tag:blogger.com,1999:blog-36574863415282950422024-03-19T03:54:11.326-07:00दायरादायरा, बंधा हुआ नहीं....खुले आसमान की तरह विस्तृत....एक अभिव्यक्ति, एक सोच कल, आज और कल की....संकीर्ण मानसिकता की बंदिशों से परे........ये है मेरा दायरा.....अनु गुप्ताhttp://www.blogger.com/profile/04850936250892615746noreply@blogger.comBlogger30125tag:blogger.com,1999:blog-3657486341528295042.post-27012106730433930392012-02-08T22:44:00.000-08:002012-02-08T22:58:31.896-08:00मैं हर उस पल घुटती हूं...!<strong>मैं</strong> दिल्ली की एक <strong>आम</strong> लड़की हूं। सड़कों पर, बसों में, मेट्रो में और दफ़्तरों में नज़र आने वाली एक आम लड़की... जो हर उस पल <strong>घुटती</strong> है, जब किसी की <strong>बेशर्म नज़रें</strong> उसे घूरती हैं। वही आम लड़की जो तब-तब <strong>शर्मिंदा</strong> होती है, जब-जब उसे बेइज्जत करने वाले <strong>ढिठाई </strong>से हंसते हैं। मेरी <strong>कोई उम्र नहीं</strong>, न ही कोई नाम है। चाहे मैं 2 साल की नवजात हूं.. या 14 साल की नाबालिग... या फिर 80 साल की बेबस, इंसानियत को शर्मसार करने वालों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आप सबकी तरह अब तक यही मानती रही कि मैं आज़ाद हूं, मेरी भी ज़िंदगी है और मैं आधुनिक हूं। लेकिन ये सिर्फ एक भूल थी। आप मेरे लिबास, मेरी पढ़ाई या मेरे रहन-सहन पर मत जाइए। मेरी असली हालत से <strong>अखबार</strong> के पन्ने रंगे रहते हैं। हां, मैं ख़ुद को आज़ाद मानती रही। <strong>लेकिन फिर क्यों,</strong> जब तक मैं घर नहीं लौट आती, मम्मी को मेरी <strong>फिक्र</strong> सताती रहती है। बस में सफर करते वक़्त जब अचानक मेरी नज़रें अपने आस-पास के लोगों पर पड़ती हैं, तब पता चलता है कि किसी की गंदी नज़रें मुझे घूर रही हैं। घबराकर या कभी परेशान होकर जब मैं खिड़की से बाहर ताकती हूं, तो बाहर से कोई अपनी हरकतों से मुझे आंख बंद करने पर <strong>मजबूर </strong>कर देता है। फिर मैं क्यों मानूं कि मैं आज़ाद हूं। जबकि मैं जी भरकर अपने आस-पास की दुनिया को देख भी नहीं सकती। हां, आज मैं आधुनिक बनकर सड़कों पर बेफिक्र घूमने का दम भरती हूं। लेकिन, सच तो यही है कि <strong>मैं कभी बेफिक्र नहीं</strong> हो पाती। पैदल चलते हुए जैसे किसी के नापाक कदम मेरा पीछा करने लगते हैं। रोज़ ही ऐसे हालातों से मैं दो-चार होती हूं। कभी मेट्रो में सफर करते वक़्त पिता समान उम्र का कोई शख्स जब <strong>गंदी नीयत</strong> से घूरता है, तो मैं किस मानसिक वेदना से जूझती हूं.. ये आप समझ नहीं पाएंगे। ऐसा नहीं है कि मैंने विरोध करना नहीं सीखा। <strong>मैं विरोध करती हूं,</strong> ज़रूर करती हूं। लेकिन मेरे आस-पास खड़े कुछ <strong>'महान'</strong> मुझे लेडीज़ कोच में सफ़र करने की 'महान' सीख देते हैं। उनके जैसे 'महान' लोग अक्सर <strong>लेडीज़ कोच</strong> में गेट पर कब्ज़ा जमाए खड़े भी नज़र आते हैं।<br />मेरे देश के <strong>कानून के तहत 'महिला की मर्ज़ी के खिलाफ फिजिकल रिलेशन बनाने को ही रेप की संज्ञा दी गई है।'</strong> पीछा करना, गंदी फब्तियां कसना, घिनौनी नज़रों से घूरना और भद्दे इशारे करना इसके खिलाफ कानून क्या कहता है, ये तो मुझे पता नहीं। लेकिन इतना जानती हूं कि आजकल ज़्यादातर मामलों में पुलिस मेरी शिकायतों को गंभीरता से लेती है। लेकिन फिर भी मेरे खिलाफ होने वाली हरकतें नहीं रुकतीं। जानते हैं क्यों, क्योंकि आपमें से कई लोग मेरा साथ नहीं देते। आप मेरे 'मामलों' में पड़ना नहीं चाहते, क्योंकि मैं आपकी रिश्तेदार या दोस्त नहीं हूं। या फिर शायद आप क़ानून के पचड़ों से बचना चाहते हैं। इसलिए <strong>मैं </strong>घुटती हूं, <strong>पल-पल मरती हूं....</strong>अनु गुप्ताhttp://www.blogger.com/profile/04850936250892615746noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-3657486341528295042.post-13471905556431681022011-11-15T21:23:00.000-08:002011-11-15T21:32:14.782-08:00शब्द<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgTbZET9Yj5Nc0AkU343H5vFyl-ix55Eyz_6vBqi8Mw05plrQwcuINrhen1AtCKwXq0UC5nnlQu2bx1V5unXws_yF7CGMcHtJ063qlV_Wwfsa9BDFyZnLHL8aHqjXOJjCB4elp4DHRhzLxk/s1600/without_words.gif"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5675461959521112690" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 448px; CURSOR: hand; HEIGHT: 186px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgTbZET9Yj5Nc0AkU343H5vFyl-ix55Eyz_6vBqi8Mw05plrQwcuINrhen1AtCKwXq0UC5nnlQu2bx1V5unXws_yF7CGMcHtJ063qlV_Wwfsa9BDFyZnLHL8aHqjXOJjCB4elp4DHRhzLxk/s320/without_words.gif" border="0" /></a><br /><br /><div><strong>शब्द..<br />कहां हैं आज !!<br />जिन्हें कागज़ पर उकेरकर<br />मन हल्का होता.<br /><span class="">शब्द...</span><br />जो बनते आवाज़<br />कभी ख़्याल...<br />तो कभी<br />डायरी में छिपी <span class="">याद.</span><br />शब्द ही<br />बनाते थे रिश्ता<br />अब बन गए <span class="">हैं...</span><br />अजनबी<br /><span class="">हां...</span> वही शब्द<br />जाने कहां हुए <span class="">गुम !!!</span><br />क्यों हुए गुमसुम<br />अब ढूंढू <span class="">कहां ?</span><br />न यहां, न वहां<br />मेरी ही... तरह<br />खामोश हुए सब<br />वीरान हुआ मन<br />हां, मेरी ही तरह<br /><span class="">इसलिए,</span><br />देखते हैं <span class="">लेकिन...</span><br />दिखता नहीं<br />सुनते हैं लेकिन...<br />सुनाई देता नहीं<br />क्योंकि...<br />खो गए हैं<br />शब्द </strong></div><br /><br /><div><strong>अनु गुप्ता</strong></div><br /><div><strong>16 नवंबर 2011</strong><br /><strong><br /></strong></div>अनु गुप्ताhttp://www.blogger.com/profile/04850936250892615746noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3657486341528295042.post-35891891557219222752011-01-24T07:22:00.000-08:002011-01-24T07:27:51.336-08:00तुम जीत जाना अरुणा<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiLeKF87sZxWazVctfvdthzGbH3TM1rb0UQAG-FjfmeS44L-5VuvCQ6iq2-ddSuU78l1vJC-v6szZCsxLtoZiciWynI7WAOQ7RZ_YiR9ip4_aCt6Ijem02Ev0EbRaqiH7BbPE_61Uktya1n/s1600/aruna+shanbaug.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 180px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiLeKF87sZxWazVctfvdthzGbH3TM1rb0UQAG-FjfmeS44L-5VuvCQ6iq2-ddSuU78l1vJC-v6szZCsxLtoZiciWynI7WAOQ7RZ_YiR9ip4_aCt6Ijem02Ev0EbRaqiH7BbPE_61Uktya1n/s320/aruna+shanbaug.jpg" border="0" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5565774420097898898" /></a><br /><div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: small; "><b><span lang="HI" style="font-size: 10pt; font-family: Mangal; ">मैं तुम्हें नहीं जानती... जो तुम्हारे साथ बीता वो भी नहीं जानती.. कुछ सुना है और कुछ पढ़ा है तुम्हारे बारे में.. तुम्हारे दर्द को फिर भी मैं नहीं समझ पाई.. आज फिर तुम्हारे बारे में कुछ सुना.. तो दिमाग में एक ही बात कौंधी.. वो ये कि.. तुम जीत जाना। इस बार जीत तुम्हारी हो। बहुत साल पहले जब तुम हार गई थीं.. पहले एक भेड़िए से और फिर देश के कानून से। क्योंकि तुम कानून को अपनी आपबीती का सबूत नहीं दे पाईं थीं। तुम पर क्या कुछ बीता इसका सबूत तुमसे मांगा गया। हैरानी है कि कानून को ना तो तुम नजर आईं और ना तुम्हारा निर्जीव शरीर। जिसमें दिल तो धड़क रहा था लेकिन कोई हलचल नहीं थी। तुम कैसे सबूत देतीं। कौन तुम्हारी बात मानता। जब तुम ही किसी को नजर नहीं आईं तो तुम्हारा सबूत किसे नजर आता। तुम हारी नहीं</span><span style="font-size: 10pt; font-family: Mangal; ">, <span lang="HI">तुम्हें जानबूझकर हरा दिया गया। जो सपने तुमने देखे वो भी अधूरे रह गए। फिर भी मैं तुम्हारा दर्द नहीं समझ पाती। कुछ दिन पहले गुजारिश देखी। तब जिंदगी के बिना जिंदगी जीते शख्स को देखकर आंखें भर आईं थीं। उस दर्द को हल्का-सा महसूस किया था। लेकिन वो सिर्फ एक कहानी थी। मगर तुम तो हकीकत हो। जब बेरहमी से तुम्हें जिंदगी से दूर कर दिया गया.. लेकिन बदकिस्मती ने तुम्हें मौत भी नहीं दी। बदनसीबी ने भी तुम्हें हरा दिया। तुम तड़पती रही हो.. पर कभी किसी से कुछ कह नहीं सकी। अरुणा</span>, <span lang="HI">इतना दर्द किसी से कहे बिना तुमने कैसे सह लिया। तुम तो उस शख्स को कोस भी नहीं पाईं.. जो तुम्हें इस हाल में पहुंचाने का जिम्मेदार है। तुम चीख भी नहीं पाईं। तुम्हारे साथ क्या हुआ</span>, <span lang="HI">उस सबसे तुम अनजान हो गईं। पता नहीं इतना दर्द तुमने अपने अंदर कैसे समेट लिया। तुम्हारी सिसकियों की आवाज भी खो गई। तुम बहुत हिम्मती हो अरुणा</span>, <span lang="HI">सचमुच तुम्हारी हिम्मत की दाद देती हूं। तुम्हें शायद किसी से शिकायत नहीं। 27 नवंबर 1973 की उस रात क्या हुआ तुम नहीं जानती। तुमने सब सह लिया। सब कुछ अपने भीतर समेट लिया। तुम खामोश लड़ती रहीं। फिर भी तुमने शिकायत नहीं की। अरुणा</span>, <span lang="HI">गुजारिश का ईथन भी जिंदगी से हार गया था। उसे क्वाड्रप्लीजिक था</span>, <span lang="HI">मतलब उसके शरीर में गर्दन से नीचे का पूरा हिस्सा बेकार हो गया थी। फिर उसने अपनी जिंदगी की आखिरी लड़ाई लड़ी। उसने अपने लिए वो मांगा</span>, <span lang="HI">जिसका इंतजार तुम पिछले 37 साल से कोमा में होगी। इच्छा मृत्यु</span>, <span lang="HI">हमारे देश में इसके लिए कोई कानून नहीं है ना</span>, <span lang="HI">तुम्हें शायद पता होगा। हां तुम्हें जरूर पता होगा। आज तुम जिस हालत में हो उसमें पहुंचने से पहले तुम्हें भी पता होगा इच्छा मृत्यु के बारे में। है ना अरुणा... तुम वेजिटेटिव स्टेज में हो.. तुम्हारा शरीर निष्क्रिय हो चुका है.. लेकिन अरुणा तुम्हारा दिला भी धड़कता है ना। जानती हो गुजारिश में ईथन ने अपनी इच्छा मृत्यु के लिए लड़ाई लड़ी थी। वो भी अपनी जिंदगी से हारने लगा था। 14 साल जड़ता भरी जिंदगी ने उसके दिमाग को भी जड़ कर दिया था। वो भी मुक्ति चाहता था। इसलिए उसने यूथनेश्यिया यानि मर्सी किलिंग के लिए अपील की। उसने अदालत से अपने लिए मौत मांगी। देश के कानून से अपने लिए मुक्ति मांगी। पर तुम तो ये भी नहीं कर सकतीं अरुणा.. तुम इतनी मजबूर हो जाओगी कभी, ऐसा तुमने कब सोचा होगा। जिन आंखों से तुमने दुनिया जीतने के सपने देखे होंगे, आज वो आंखें सूनी पड़ी हैं। तुम क्यों बोलती नहीं अरुणा, काश तुम बोल पातीं। अपने साथ हुई ज्यादती को दुनिया को बता पातीं। लेकिन देश का कानून फिर भी तुम्हें इंसाफ दिलाने की गारंटी नहीं देता। अरुणा रामचन्द्र शानबाग, तुम्हारा नाम है। अपना नाम तो तुम पहचानती हो ना अरुणा। </span></span><span >जानती हो आज देश की सबसे बड़ी अदालत ने तुम्हारे लिए एक कमेटी बनाई है। जिसके तीन डॉक्टर तुम्हारा फैसला करेंगे। तुम अपनी जिंदगी भी अपनी तरह नहीं जी पाईं और अब मौत के लिए भी तुम दूसरों पर निर्भर हो गई हो। कितनी बेबसी, ऐसा तो तुमने कभी सोचा नहीं होगा अरुणा। तुम्हारी मौत के लिए लड़ाई लड़ी जा रही है। इच्छा मृत्यु के लिए ताकि तुम आजाद हो सको इस बेबसी से.. लाचारी की इस जिंदगी से। हां सच अरुणा, बस इतनी ही दुआ है... तुम जीत जाना अरुणा, तुम जीत जाना। इस बार तुम सचमुच जीत जाना ताकि उस जिंदगी से मुक्त हो सको, जिसे तुमने जिया भी नहीं। प्लीज इस बार जरूर जीत जाना अरुणा ।</span></b></span></div><div><div class="gmail_quote"><p class="MsoNormal" style="margin-top: 0cm; margin-right: 0cm; margin-bottom: 0pt; margin-left: 0cm; font-family: arial; font-size: small; "><span ><b><br /></b></span></p><p class="MsoNormal" style="margin-top: 0cm; margin-right: 0cm; margin-bottom: 0pt; margin-left: 0cm; font-family: arial; font-size: small; "><span ><b>अनु गुप्ता</b></span></p><p class="MsoNormal" style="margin-top: 0cm; margin-right: 0cm; margin-bottom: 0pt; margin-left: 0cm; font-family: arial; font-size: small; "><span ><b>24 जनवरी 2011</b></span></p></div><br /></div>अनु गुप्ताhttp://www.blogger.com/profile/04850936250892615746noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-3657486341528295042.post-5837831851427148612010-09-24T10:52:00.000-07:002010-09-24T11:01:17.077-07:00मुझे यकीन नहीं<strong></strong><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi1abN8ncolddnT13i_mSs1hI0O1r6QiSgd94rFHWS0K2tT-fOpBNmcbnO0OE0AmnDAduhDE4aH57W7pniLqQPtKm0exp1FcnDf-SxuiTBZq_O5_2jIQiHfh7w4pW8My8150mUkrihPvvAX/s1600/THE_LONELINESS.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5520541440808067138" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 271px; CURSOR: hand; HEIGHT: 310px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi1abN8ncolddnT13i_mSs1hI0O1r6QiSgd94rFHWS0K2tT-fOpBNmcbnO0OE0AmnDAduhDE4aH57W7pniLqQPtKm0exp1FcnDf-SxuiTBZq_O5_2jIQiHfh7w4pW8My8150mUkrihPvvAX/s320/THE_LONELINESS.jpg" border="0" /></a><br /><div><strong>फिर भी<br />मुझे यकीन नहीं<br />बाहं <span class="">छुड़ाकर,</span><br />तुम लौट तो गए<br />ठहरे <span class="">नहीं,</span><br />ना पुकारा मुझे<br />दर्द <span class="">छोड़कर,</span><br />तुम लौट ही गए<br />फिर भी<br />मुझे यकीन नहीं<br />क्या तुम ही थे<br />वो<br />कभी मिले थे<br />कहीं<br />सब <span class="">भूलकर,</span><br />तुम लौट तो गए<br />मुझे यकीन नहीं<br />बस<br />इतना ही सफर<br />या<br />ना मंजिल ना <span class="">डगर,</span><br />बीच राह छोड़कर<br />तुम चले तो गए<br />फिर भी<br />मुझे यकीन नहीं<br />खामोश-सा<br />बेकरार हर लम्हा<br />बेसब्र सवाल<br />क्यों<br /><span class="">क्यों </span></strong></div><div><strong>टूटकर<br />मुझे तोड़कर<br />तुम चले तो गए<br />फिर भी<br />मुझे यकीन नहीं<br /><br />अनु गुप्ता<br />24 सितंबर 2010<br /><br /><br /></strong></div>अनु गुप्ताhttp://www.blogger.com/profile/04850936250892615746noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-3657486341528295042.post-67407517408962649522010-06-20T06:50:00.000-07:002010-06-20T07:01:40.856-07:00हलचल<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEikyPziD8BVaaFb8Zw7dPG7bhBfL9ctLHnl4v6Gh7m8ilZr4SOer0OvMPbWbIMNucVqWzw5xfcpmb3g8MWpHm8UFLepHDf60K_rd_NN-VCMu07c-0UqJaXqKHu6w8oS3sPj1V18xSVMvyhP/s1600/01.jpeg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 213px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEikyPziD8BVaaFb8Zw7dPG7bhBfL9ctLHnl4v6Gh7m8ilZr4SOer0OvMPbWbIMNucVqWzw5xfcpmb3g8MWpHm8UFLepHDf60K_rd_NN-VCMu07c-0UqJaXqKHu6w8oS3sPj1V18xSVMvyhP/s320/01.jpeg" border="0" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5484855023092684514" /></a><br /><div><b>फिर वही उथल-पुथल,</b></div><div><b>विचारों के सागर में..</b></div><div><b>फिर वही हलचल</b></div><div><b>स्वयं पर प्रश्नचिह्न,</b></div><div><b>स्वयं ही देती उत्तर..</b></div><div><b>फिर वही हलचल</b></div><div><b>हां.. बहकते हैं कभी</b></div><div><b>मेरे भी विचार,</b></div><div><b>तब जूझती हूं मैं भी..</b></div><div><b>अपने ही अंतरद्वंद से,</b></div><div><b>हूक उठाती है मन में..</b></div><div><b>फिर वही हलचल</b></div><div><b>स्वयं में उलझी रहूं..</b></div><div><b>या प्रश्नों को सुलझाऊं,</b></div><div><b>क्यों नहीं बीत जाता..</b></div><div><b>बीता हुआ हर एक पल</b></div><div><b>यादों में तड़पती है,</b></div><div><b>फिर वही हलचल,</b></div><div><b>हर लम्हा, हर पल</b></div><div><b>बस यही हलचल</b></div><div><b><br /></b></div><div><div><b>अनु गुप्ता</b></div><div><b>20 जून 2010</b></div></div>अनु गुप्ताhttp://www.blogger.com/profile/04850936250892615746noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3657486341528295042.post-67119642357610028882010-06-07T09:28:00.000-07:002010-06-07T18:24:15.923-07:00इस मजाक का शुक्रिया !<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgOe9ftoD9ZL5pCrPUc7iSXaeIhz29lZ_9B3wl2BsXy8LJMDNgzV8NhQoo6xuKZ_55Smd9IE7b8tVFTdkMyWbu-BLzwhyr27aIVW7-HKgEQtNruucy7f1fOFkzMm5Xg1RAbDpkXmnERzIyW/s1600/Gujarat-High-Court01.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5480070324491948178" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 320px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgOe9ftoD9ZL5pCrPUc7iSXaeIhz29lZ_9B3wl2BsXy8LJMDNgzV8NhQoo6xuKZ_55Smd9IE7b8tVFTdkMyWbu-BLzwhyr27aIVW7-HKgEQtNruucy7f1fOFkzMm5Xg1RAbDpkXmnERzIyW/s320/Gujarat-High-Court01.jpg" border="0" /></a><br /><div><b>हा हा हा हा हा.. ही ही ही ही.. </b></div><div><b>अरे भई हैरान मत होइए. मैं हंस रही हूं. वैसे इस तरह नहीं हंसती. ये तो बस आपको जताने के लिए. </b></div><div><b>खैर, अब हंसने की वजह भी बता दूं, आप जानना तो चाहते हैं ना. प्लीज इनकार मत करिए. शायद आपको भी हंसी आ जाए. और कुछ नहीं खून की कुछ बूंद बढ़ जाएंगी. ये बात अलग है कि.. ये बढ़ा हुआ खून आंखों से बहने लगे. </b></div><div><b><br /></b></div><div><b>घबराइए मत, हो सकता है ऐसा आपके साथ ना हो. चलिए, और ज्यादा सस्पेंस नहीं बढ़ाना चाहती. वक्त की कमी आपके पास भी है और मेरे पास भी. </b></div><div><b><br /></b></div><div><b>25 साल लंबा इंतजार, पहले जो त्रस्त थे.. आज एक फैसले से पस्त हो गए हैं. उनके हौंसले अब भी बुलंद हैं, हिम्मत बाकी है.. लेकिन आज जो कुछ हुआ.. जो फैसला आया, वो हमारी कानून व्यवस्था पर सवाल है. 25 साल के इंतजार का ये फल मिला. बस दो साल और 5 लाख रूपये. बस.. क्या इतनी सस्ती है इंसान की जान. हजारों लोग जो काल का ग्रास बन गए, लाखों लोग.. जो आज भी बीमारियों से संघर्ष कर रहे हैं.. उनके इंतजार का ये फल ? शर्मनाक है भोपाल सीजेएम कोर्ट का फैसला. फैसला सुनकर दुख तो हुआ, लेकिन हंसी भी आ गई. कानून जानने वालों का ये हाल ? कमाल है.. ऐसा कैसे हो सकता है ?</b></div><div><b><br /></b></div><div><b>भोपाल गैस त्रासदी को 25 साल से ज्यादा बीत गए. भोपाल इंतजार करता रहा. कब फैसला आए और कब उसके बाशिंदों को इंसाफ मिले. लेकिन नहीं ऐसा नहीं हुआ. 25 साल पहले कब्रिस्तान में तब्दील हुए शहर ने ऐसा नहीं सोचा होगा कि.. उसे बर्बाद करने वाले २ साल की कैद और पांच लाख रूपये जुर्माने की सजा पर निबटा दिए जाएंगे. क्या कानून यही कहता है ? क्या सचमुच ये इंसाफ है ? सीजेएम कोर्ट ने यूनियन कार्बाइड के 8 अधिकारियों को केवल 2-2 साल की सजा और पांच-पांच लाख जुर्माने की सजा सुनाई. बस इतना ही नहीं, सजा सुनाए जाने के कुछ मिनट बाद 25 हजार के मुचलके पर जमानत भी मिल गई. क्या कहने हैं.. जोर का झटका जोर से ही लगा. 2-3 दिसंबर 1984 की रात मिथाइल आइसोसाइनाइट गैस ने लोगों का दम घोंट दिया था और आज अदालत के इस फैसले ने उन्हें मारने का ही काम किया है.</b></div><div><b><br /></b></div><div><b>25 साल बाद भी फैसला आया तो सीजेएम कोर्ट में.. इसके बाद हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट बाकी हैं. फिर आरोप-प्रत्यारोप, फिर कानून खरीदने-बेचने का काम और शायद फिर भी किसी को सजा नहीं मिलेगी. भोपाल गैस त्रासदी को दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना बताया जाता है. और 25 साल के इंतजार के बाद पीड़ितों को आधा-अधूरा इंसाफ मिला. क्या इतने बड़े मामले में ऐसी सजा मिलनी चाहिए. क्या कानून की किताबों में यही लिखा है ? मैं कानून नहीं जानती, कानून के प्रावधान और दांव-पेंच.. सब मेरी समझ से परे हैं. सुना है कानून बस सबूत मांगता है. तो क्या गैस कांड में मारे गए लोगों की भयावह तस्वीरें सबूत नहीं हैं ? क्या आज भी अपंग पैदा होते बच्चे सबूत नहीं हैं ? </b></div><div><b><br /></b></div><div><b>मुझे वाकई समझ नहीं आ रहा कि.. आखिर इस फैसले की वजह क्या है. 25 साल का इंतजार और केवल दो साल की कैद और पांच लाख रूपये जुर्माना. मैं क्या करूं ? मुझे समझ नहीं आ रहा. अपनी इसी नासमझी पर मुझे हंसी आ रही है. क्या आप मुझे समझा सकते हैं ? लेकिन प्लीज अब आप मत हंसना।</b></div><div><b><span class=""></span></b> </div><div><b>अनु गुप्ता</b></div><div><b>7 जून 2010</b></div>अनु गुप्ताhttp://www.blogger.com/profile/04850936250892615746noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3657486341528295042.post-11566707901097443382010-03-14T10:10:00.000-07:002010-03-14T10:19:31.458-07:00मेरे शहर में कितना सन्नाटा है<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjzOm8B7CFzoNMz8aUlGKvsqPUlhH1paQHis1VCoWy-rTw8JeAtg-mdZTyxTv2JumMPoO_BwCktgsksbtbuqHQYqhFVbrVf69px0oqL3MQU1HcH_Ihp4IrM08jTC_T74Qcf0diVjfujVQU8/s1600-h/GD8915422@A-cloud-of-smoke-bill-3186.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5448540053397704370" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 664px; CURSOR: hand; HEIGHT: 214px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjzOm8B7CFzoNMz8aUlGKvsqPUlhH1paQHis1VCoWy-rTw8JeAtg-mdZTyxTv2JumMPoO_BwCktgsksbtbuqHQYqhFVbrVf69px0oqL3MQU1HcH_Ihp4IrM08jTC_T74Qcf0diVjfujVQU8/s320/GD8915422@A-cloud-of-smoke-bill-3186.jpg" border="0" /></a><br /><div><strong>गोली की आवाज नहीं..</strong></div><div><strong>ना कोई धमाका है।</strong></div><div><strong>तुम्हारे शहर को देखा</strong></div><div><strong>तब सोचा.. </strong></div><div><strong>मेरे शहर में कितना सन्नाटा है।</strong></div><div><strong>जाने कैसे जीते हैं..</strong></div><div><strong>तुम्हारे शहर के <span class="">लोग,</span></strong></div><div><strong>एक के बाद एक</strong></div><div><strong>धमाका खुद को दोहराता है।</strong></div><div><strong>ये मेरी शिकायत नहीं,</strong></div><div><strong>ना कोई गिला मुझे..</strong></div><div><strong>अपने दायरे में खुश हूं मैं,</strong></div><div><strong>लेकिन..</strong></div><div><strong>तुम कैसे जीते होगे..</strong></div><div><strong>बस.. यही सवाल</strong></div><div><strong>मन को बहुत डराता है।</strong></div><div><strong>तुम्हारे शहर को देखा</strong></div><div><strong>तब सोचा..</strong></div><div><strong>मेरे शहर में कितना सन्नाटा <span class="">है..</span></strong></div><div><strong>मेरे शहर मे कितना सन्नाटा है।</strong></div><br /><div></div><br /><div></div><div><span style="font-size:130%;"><strong>अनु गुप्ता</strong></span></div><div><span style="font-size:130%;"><strong>14 मार्च 2010</strong></span></div>अनु गुप्ताhttp://www.blogger.com/profile/04850936250892615746noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-3657486341528295042.post-61445502743620902542009-11-25T18:16:00.000-08:002009-11-25T18:21:52.049-08:00आप भी सोचो, मैं भी सोचूं...<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgwdxG5e4omWX9RL50QQN1mCRFwxXDSF6ipzU2Gy-0clzd4qGDBA4aRmEOzuF9OOZ-8TLh2DKhUvhyphenhyphen6DWiSQIF5hD4YuPt6m3pKDF5IQ3LZpdrN3wrh0PJ7rnRBrOjtIHu7g7nJXa0_bT5p/s1600/479px-Candle-flame-and-reflection-main_Full.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5408231645055219042" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 256px; CURSOR: hand; HEIGHT: 297px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgwdxG5e4omWX9RL50QQN1mCRFwxXDSF6ipzU2Gy-0clzd4qGDBA4aRmEOzuF9OOZ-8TLh2DKhUvhyphenhyphen6DWiSQIF5hD4YuPt6m3pKDF5IQ3LZpdrN3wrh0PJ7rnRBrOjtIHu7g7nJXa0_bT5p/s320/479px-Candle-flame-and-reflection-main_Full.jpg" border="0" /></a><br /><div><strong>एक साल बीता.. जैसे बीता कोई पड़ाव.. लेकिन अब तक नहीं बदले हालात.. आज भी खिलवाड़.. कभी धमाका.. कभी हत्या.. नहीं लिया कोई सबक.. 26/11 का एक साल.. शहीद हुए कई जाबांज.. बचा लिया देश.. दे दी आहुति प्राणों की.. क्या हमने कुछ सीखा.. क्या हम बदले.. नहीं.. नहीं और सिर्फ नहीं इसका जवाब.. क्या गया मेरा.. क्या गया तेरा.. मैनें नहीं खोया किसी को.. मैं भूल गई वो दिन.. खौफ की वो रातें तीन.. आज कुछ नम भी हो जाऊं.. लेकिन कल फिर भूल जाऊं.. तो क्या यही है श्रद्धांजलि.. यही है शहीदों की शहीदी.. इसलिए दी उन्होंने जान.. इसलिए हुए वो कुर्बान.. क्या यही होना था अंजाम.. आतंकियों ने डराया.. गोलियों से धमकाया.. लेकिन डटे रहे वो वीर.. उनका भी कोई घर था.. एक परिवार..जो बैठा था इंतजार में.. सांसों को अपनी थामकर.. लेकिन नहीं लौटा.. कोई बेटा, कोई सुहाग और कोई पिता.. बहन आज भी रोएगी.. मां का दिल भर आएगा.. पिता का मन होगा भारी.. लेकिन केवल शहीदी पर नहीं.. उनके सपूतों की धुंधली याद पर भी.. देश के हालात पर भी.. मार-धाड़ मची है यहां.. भ्रष्टाचार का बोलबाला.. अपनी-अपनी बनाने में लगे सभी.. फिर क्यों शहीद हुआ मेरा बेटा.. अगर होना था यही.. ऐसा तो नहीं सोचा था.. बयानबाजी जोरों पर.. राजनीति का बन गया मुद्दा.. लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात.. क्यों नहीं बदलते हम.. मोमबत्ती जलाना ही नहीं श्रद्धांजलि.. वो महज भावनाएं.. बदलना है तो दिल से बदलें.. मजबूरी नहीं कर्तव्य.. देश ने दिया सब कुछ.. आप भी कुछ देना सीखें.. यही होगी श्रद्धांजलि.. ताकि.. फिर ना लौटे 26/11.. फिर ना हो कोई आंसू.. ऐसी जलाएं मोमबत्ती.. जैसें हों भावनाएं आपकी.. हैं तैयार आप.. </strong></div><div><strong>आप भी सोचो.. मैं भी सोचूं.. </strong></div><div><strong><span style="font-size:130%;">26/11 के शहीदों को श्रद्धांजलि..</span></strong></div>अनु गुप्ताhttp://www.blogger.com/profile/04850936250892615746noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-3657486341528295042.post-61314358810293563832009-09-16T05:32:00.000-07:002009-09-16T05:48:17.077-07:00बस.. कह देना<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgWsufo_hpGZb-q1x_SuISLwspjvyqe7PzHooJc1t1wDQR4TAk7u3cADEpYPECUOu9M4MQuuWAstBwjwgOfcf64BzSX48FCI2mUPPy71R2aUC0cY9bGjUPIDE6rSitnvSXhcFtlLqekyoYW/s1600-h/000000000000.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5382045632029607186" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 250px; CURSOR: hand; HEIGHT: 200px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgWsufo_hpGZb-q1x_SuISLwspjvyqe7PzHooJc1t1wDQR4TAk7u3cADEpYPECUOu9M4MQuuWAstBwjwgOfcf64BzSX48FCI2mUPPy71R2aUC0cY9bGjUPIDE6rSitnvSXhcFtlLqekyoYW/s320/000000000000.jpg" border="0" /></a><br /><div>जब ना रहे साथ,</div><div>और</div><div>खत्म हो हर बात</div><div>कह देना चांद से..</div><div>उसकी </div><div>चांदनी हमने देखी नहीं</div><div>कह देना बाग से..</div><div>उसमें</div><div>फूल हमारा खिला नहीं..</div><div>जब घिर आए रात,</div><div>और</div><div>बिगड़े हों हालात</div><div>कह देना रास्तों से..</div><div>उनसे </div><div>हम गुजरे नहीं</div><div>कह देना साज से..</div><div>उसमें</div><div>हमारी आवाज नहीं</div><div>जब मर जाए जज़्बात</div><div>और </div><div>जिंदगी लगे आघात</div><div>कह देना चाहों से..</div><div>उन्हें</div><div>हमारी ख्वाहिश नहीं</div><div>और कह देना आहों से..</div><div>उनमें</div><div>हमारा दर्द नहीं</div><div>जब भूलें हर मुलाकात..</div><div>कह देना ये बात</div><div>बस.. कह देना </div><br /><div></div><div><strong>अनु गुप्ता</strong></div><div><strong>16 सितंबर 2009</strong></div>अनु गुप्ताhttp://www.blogger.com/profile/04850936250892615746noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-3657486341528295042.post-44915296214841349472009-09-11T10:02:00.000-07:002009-09-11T10:09:07.100-07:00खिलौना जान कर तुम तो... (अंतिम भाग)<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZA_1PzEjqYrVHEOI685Mu_5ToWXBkHjc8BF1uCs0OBPqMbK2GeL4MVdM2Smd1oVBNf4DmbI2zFyZsDeWwlN_SMc7SGqdSI13u1-W2ghxGEgyZm_oaXGwmVNJW7c9WxZJsCXQu8OSOr0fS/s1600-h/puppet.gif"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5380257857027080402" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 358px; CURSOR: hand; HEIGHT: 320px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZA_1PzEjqYrVHEOI685Mu_5ToWXBkHjc8BF1uCs0OBPqMbK2GeL4MVdM2Smd1oVBNf4DmbI2zFyZsDeWwlN_SMc7SGqdSI13u1-W2ghxGEgyZm_oaXGwmVNJW7c9WxZJsCXQu8OSOr0fS/s320/puppet.gif" border="0" /></a><br /><div>तमाशे के दो पाटों के बीच पिसती जिंदगी.. चेहरे पर शिकन.. हाशिए पर सिमटी खुशियां.. कुछ यही कहानी हो गई तमाम कलाकारों की। अब यहां हमेशा अफवाहों का बाजार गर्म रहता। साहबजी और मुनीमजी की खींचातनी से सभी वाकिफ थे.. लेकिन फिर भी कभी ऐसा लगता कि.. सब कुछ ठीक ही चल रहा है। तमाशे की टीआरपी चढ़ती-उतरती.. कभी इस कलाकार की तारीफ होती.. तो कभी उस कलाकार को सबके सामने खून का घूंट पीना पड़ता। तमाशे में चल रही खींचातनी का गवाह एक चाय की दुकान है.. वहीं इस सबकी चर्चा होती.. कौन आने वाला है.. कौन जाने वाला है.. लेकिन अचानक कुछ ऐसा हुआ.. जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी.. कभी सपने में नहीं सोचा था.. परदे के पीछे एक और तमाशा हुआ.. खूब खबर उड़ी.. लेकिन इस तमाशे की गाज जिस शख्स पर गिरी.. वो बड़ा चौंकाने वाला था.. तमाशे के लपेटे में मुनीमजी आ गए.. मुनीमजी ही नहीं.. उनके साथ दो बड़े कलाकार भी.. कई बार तमाशे की कहानी बनाने-बिगाड़ने वाले लोग इस बार खुद कहानी बन गए.. लेकिन ये क्या.. तीनों कलाकारों को तमाशे से बाहर कर दिया गया.. जंगल में आग से भी तेज फैली ये खबर.. पर इस बार किसी के चेहरे पर शिकन नहीं.. कोई नहीं घबराया.. कहीं दबी हुई आवाज में खुशी नजर आती.. तो कहीं खुल्लमखुल्ला इसका जिक्र था.. </div><div>इतना वक्त गुजर गया.. अब तक तमाशे के कलाकार इसके आदी हो चुके हैं.. उन्हें पता है.. यही उनकी कर्मभूमि है.. जिसने उन्हें पहचान दी.. अच्छी या बुरी.. और यही इस तमाशे की असल कहानी है.. यही इसका सबक.. कि.. ये कभी खत्म नहीं होने वाला.. टीआरपी बढ़े या फिर गिर जाए.. आना-जाना लगा रहेगा.. इसलिए तमाशे की शुरुआत कभी हुई हो.. कहीं भी हुई हो.. इसका कोई अंत नहीं.. ये अनंत है.. इसलिए मुस्कुराना भी जरूरी है.. <strong>भले उनकी डोर कभी किसी और के हाथ में हो...<br /></strong></div><br /><div>इस सीरीज के पहले दो भाग पढ़ने के लिए यहां <a href="http://meradayra.blogspot.com/2009/08/blog-post.html">क्लिक</a> करें। </div><br /><div></div><br /><div><strong>अनु गुप्ता</strong></div><div><strong>11 सितंबर 2009</strong></div>अनु गुप्ताhttp://www.blogger.com/profile/04850936250892615746noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3657486341528295042.post-80230680739779338422009-09-11T09:26:00.000-07:002009-09-11T09:41:26.811-07:00झांसी की रानी की तस्वीर<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgBr_dejRGZnsS13K23goNoNYBZEh16Nlbp2RcltpxmRYajGCP2uPdwZ9PmjVJPjNgRPBg0JD3MNqHW7wlmW13Ouz-irVtW9o4eYqnZfrSHyXVa3U5yxfZcGV7oWgvIPeLWhaBDh4xT-85c/s1600-h/02.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5380249704693099858" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 299px; CURSOR: hand; HEIGHT: 206px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgBr_dejRGZnsS13K23goNoNYBZEh16Nlbp2RcltpxmRYajGCP2uPdwZ9PmjVJPjNgRPBg0JD3MNqHW7wlmW13Ouz-irVtW9o4eYqnZfrSHyXVa3U5yxfZcGV7oWgvIPeLWhaBDh4xT-85c/s320/02.jpg" border="0" /></a><br /><div><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjQMisEbw2OKnsEfA7fZTXiIdd6dEIhn_6TpHnpIyNKzFaHwlZearogNB4uC-wdDmQrcdAMpAgC7uAfb-1ROWT0Ij9YibV4dYSVXd5EHCdxyeTtM0EbwKC5OFW6U1VoDrhlNQD4AE4NOB7m/s1600-h/01.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5380249693494189778" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 306px; CURSOR: hand; HEIGHT: 242px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjQMisEbw2OKnsEfA7fZTXiIdd6dEIhn_6TpHnpIyNKzFaHwlZearogNB4uC-wdDmQrcdAMpAgC7uAfb-1ROWT0Ij9YibV4dYSVXd5EHCdxyeTtM0EbwKC5OFW6U1VoDrhlNQD4AE4NOB7m/s320/01.jpg" border="0" /></a><br /><br /><div><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-Vj0uglXJk1FRhgZmFoJAof8NM6D_jFcbiV9nncI0HDfxRVpAqsqoj2lNgLutUWoWEtLCuImGjT5Z8ZxDAz6S-qPRsgO4HZ5vgq1aEbKOtcZF505MHdIT1afGXk6ZV7VvtddrAQ_KCtrM/s1600-h/03.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5380249708709334434" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 226px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-Vj0uglXJk1FRhgZmFoJAof8NM6D_jFcbiV9nncI0HDfxRVpAqsqoj2lNgLutUWoWEtLCuImGjT5Z8ZxDAz6S-qPRsgO4HZ5vgq1aEbKOtcZF505MHdIT1afGXk6ZV7VvtddrAQ_KCtrM/s320/03.jpg" border="0" /></a><br /><br /><br /><div>पिछले दिनों अपने ब्लॉग पर झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की तस्वीर के बारे में बताया था। खबर के साथ झांसी की रानी तस्वीर भी थी। लेकिन वो तस्वीर सही नहीं थी। ई-पेपर भास्कर डॉट कॉम पर खबर के साथ जो तस्वीर प्रकाशित की गई.. दरअसल वो गलत थी। लेकिन ये खबर सही है कि.. इतिहास के पन्नों में झांसी की रानी की एकमात्र तस्वीर मौजूद है। </div><div>भोपाल के फोटोग्राफर वामन ठाकरे ने आज भी उस तस्वीर </div><div>को सहेजा हुआ है। एक निजी समाचार चैनल पर इस खबर </div><div>को दिखाया गया.. जिसमें लक्ष्मीबाई की भी दिखाई गई। </div><div>अपनी भूल को सुधारते हुए.. मैं अपने ब्लॉग पर झांसी की </div><div>रानी की वास्तविक तस्वीर दे रही हूं.. </div><div> </div><div>पिछली पोस्ट पढ़ने के लिए इस <a href="http://meradayra.blogspot.com/2009/09/blog-post.html">लिंक</a> पर क्लिक करें।</div><div> </div><div>अनु गुप्ता</div><div>11 सितंबर 2009</div><br /><br /><br /><div></div></div></div>अनु गुप्ताhttp://www.blogger.com/profile/04850936250892615746noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3657486341528295042.post-7019454002466769802009-09-02T07:26:00.000-07:002009-09-02T07:44:07.876-07:00मैं तरसती हूं..<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiydxc7vLKvY4XrJXroR3aTrCgxIvsj4fXbJ0WJI6NJLOkWF4xdpF5kq6GJak32kYn3-S-319O0zfo62Ty6a0MTwYyJJz-Amfwf5ICzpDu14IoMzgmaVyMzqOcrNMx7gw2kzejE6HQ9tv4t/s1600-h/1.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5376879518395319778" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 209px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiydxc7vLKvY4XrJXroR3aTrCgxIvsj4fXbJ0WJI6NJLOkWF4xdpF5kq6GJak32kYn3-S-319O0zfo62Ty6a0MTwYyJJz-Amfwf5ICzpDu14IoMzgmaVyMzqOcrNMx7gw2kzejE6HQ9tv4t/s320/1.jpg" border="0" /></a><br /><div><strong>बारिश की..</strong></div><div><strong>एक अलसाई सुबह में,</strong></div><div><strong>मैं तरसती हूं..</strong></div><div><strong>जागने में आनाकानी के लिए,</strong></div><div><strong>मां की एक झड़प के लिए,</strong></div><div><strong>भीगे पत्तों, गीली ज़मीन</strong></div><div><strong>पर.. </strong></div><div><strong>अपना नाम उकेरने के लिए।</strong></div><div><strong>माटी की सौंधी महक,</strong></div><div><strong>तेल की महक के लिए,</strong></div><div><strong>एक गरम प्याला</strong></div><div><strong>अदरक-इलायची वाला..</strong></div><div><strong>और</strong></div><div><strong>मद्धम-सी धुनों के लिए।</strong></div><div><strong>मैं तरसती हूं अब</strong></div><div><strong>उस एक दिन के लिए..</strong></div><br /><div><strong></strong></div><div><strong>अनु गुप्ता</strong></div><div><strong>2 सितंबर 2009</strong></div>अनु गुप्ताhttp://www.blogger.com/profile/04850936250892615746noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-3657486341528295042.post-80445271201260260652009-09-02T06:23:00.000-07:002009-09-02T06:47:31.351-07:00एक थी रानी !झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की कोई तस्वीर इतिहास में मौजूद नहीं है। स्केच या पेंटिंग के जरिए ही उनका चेहरा बनाने की कोशिश की गई है। हिंदी अखबार भास्कर की वेबसाइट पर हाल ही में एक तस्वीर प्रकाशित की गई.. जिसमें बताया गया कि.. वो तस्वीर झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की है.. तस्वीर के साथ उसका विवरण भी दिया गया है। मेरा निजी विचार यही है कि.. तस्वीर की सत्यता पर अब भी संशय है.. लेकिन उस तस्वीर को विवरण समेत मैं यहां पोस्ट कर रही हूं..<br /><strong><span class=""></span></strong><br /><strong>प्रस्तुत है विवरण-</strong><br /><strong></strong><br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh8kIgz5ZRkc_cVMj7L0Tmi-soubVjdCSAJS9AouHSV6bfZuxETCpT9iLa7b5SlCGXTb0V3ad6Wq8wIFdlqwuMSy60qzcYSzjx_wWVKggKELc_fiB0MaIDVEkdfwb7W7fNrBrPRsa-jww98/s1600-h/Rani11111.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5376862467372223026" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 310px; CURSOR: hand; HEIGHT: 240px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh8kIgz5ZRkc_cVMj7L0Tmi-soubVjdCSAJS9AouHSV6bfZuxETCpT9iLa7b5SlCGXTb0V3ad6Wq8wIFdlqwuMSy60qzcYSzjx_wWVKggKELc_fiB0MaIDVEkdfwb7W7fNrBrPRsa-jww98/s320/Rani11111.jpg" border="0" /></a><br /><br />अब तक आपने झांसी की रानी की तस्वीर पुस्तकों में स्केच या कैनवास पर ब्रश से उकेरे प्रयासों के सहारे ही देखा होगा, लेकिन भारत में रानी की लक्ष्मीबाई की मूल तस्वीर जिसको आप शायद ही कभी देखें हो।<br />जी हां ये है झांसी की रानी की 1850 में खींची गई मूल तस्वीर, जिसे सन 1850 में अंग्रेज फोटोग्राफर हॉफमैन ने लिया था। पिछले दिनों विश्व फोटोग्राफी दिवस यानि 19 अगस्त को पद्मश्री वामन ठाकरे द्वारा खींचे गए छायाचित्रों, कैनवास पे उकेरे चित्रों, लेखन कार्य और अन्य कलाकृतियों की प्रदर्शनी का आयोजन भोपाल में किया गया था। इस प्रदर्शनी में उनके विशेष आग्रह पे अहमदाबाद के एक एंटिक संग्रहकर्ता ने यह छायाचित्र भेजा था।<br />इस फोटो को श्री वामन ने प्रदर्शनी में दिखाकर लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया। क्योंकि लक्ष्मीबाई के मूल फोटो को आज तक शायद ही किसी ने देखा होगा। अभी तक ऐसा माना जाता रहा है कि इस दुनिया में रानी लक्ष्मीबाई की तस्वीर उपलब्ध नहीं है। लेकिन इस तस्वीर के एकाएक सामने आ जाने से यह साफ हो गया कि रानी की तस्वीर अभी भी उपलब्ध है।<br /><strong>साभार- भास्कर डॉट कॉम</strong><br /><strong><a href="http://www.bhaskar.com/2009/08/31/090831001322_jhanshi_ki_rani_lakshmibai.html">वेबसाइट पर लेख के लिए इस लिंक पर क्लिक करें</a></strong><br /><strong></strong><br /><strong>अनु गुप्ता</strong><br /><strong>2 सितंबर 2009</strong>अनु गुप्ताhttp://www.blogger.com/profile/04850936250892615746noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3657486341528295042.post-35740286524931607822009-08-13T18:14:00.000-07:002009-08-20T13:03:19.059-07:00खिलौना जान कर तुम तो... (दूसरा भाग)<a href="http://meradayra.blogspot.com/2009/07/blog-post_21.html"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5369621946280299554" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 290px; CURSOR: hand; HEIGHT: 231px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjGdd2m0wVAtitv1KaZoGFcvt0O-0NSbb8-P3W3UrlHhsIEnylWZTLQZP-FwDqcpwowXhGleA-G5zhVcBizsNbdu1i2gMEnlF70O7-5Tbwp_LyxkaYV9tpGVqyuGHo1wPwbRbiSuj0kCC4C/s320/1.gif" border="0" /></a><br />(खिलौना जान कर तुम तो.. इस सीरीज का पहला भाग पढ़ने के लिए <a href="http://meradayra.blogspot.com/2009/07/blog-post_21.html">लिंक </a>पर जाएं)<br /><br /><div>तमाशे से कई कलाकारों की छुट्टी हो गई। कई दिन ये खबर हवा में तैरती रही और इसी के साथ ये अफवाह भी कि.. जल्द ही कई और कलाकारों की छुट्टी हो सकती है। बेचारे.. तमाम कलाकारों में डर बैठ गया। सभी संभलकर काम करने लगे.. कुछ ऐसे भी थे.. जिन पर इसका कोई असर नहीं हुआ.. और वो पहले की तरह ही बेहतरीन तमाशा दिखाते रहे। दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी थे.. जो न पहलेकाम करते थे.. और न ही अब कर रहे थे। उन्हें यही लगता कि.. मुनीमजी और साहबजी के होते भला किसका डर। किस माई के बाप की हिम्मत.. जो उन्हें कुछ कहता। खैर, जैसे-तैसे दिन कटने लगे। पुरानी बातों को भुलाकर एक बार फिर तमाशा जमने लगा.. और कलाकार वाकई पुरानी बातें भूल गए। हालाकिं परदे के पीछे काफी कुछ घटता रहा.. अफवाहें उड़ती रहीं। इस दौरान कई कलाकारों ने तमाशे से नाम वापस लिया और उनकी जगह नए कलाकार इस तमाशे से जुड़े। खेल चलता रहा.. टीआरपी कभी गिरती.. तो कभी संभलती।तमाशा चलता रहा। कई महीने बीत गए। फिर देखते ही देखते तमाशा शुरु हुए एक साल हो गया। इस मौके पर जोर-शोर से एक गेट-टूगेदरका आयोजन भी किया गया। खूब चहल-पहल रही। वक्त बीत रहा था.. तमाशा चल रहा था। तमाशे की कमान कभी साहबजी तो कभी मुनीमजके हाथों में घूमती रहती। अक्सर कलाकारों की छंटनी की अफवाहें उड़ती रहती। इसी बीच एक और वाक्या हुआ। और वो ये कि.. कई कलाकारों की पगार बढ़ा दी गई। हालांकि समकक्ष वाले कलाकारों में कुछ की पगार बढ़ी.. तो कुछ की नहीं। एक बार फिर परदे के पीछेचर्चा शुरु हो गई। मुनीमजी और साहबजी पर भेदभाव का आरोप लगा। जिनकी पगार बढ़ी थी.. वो कलाकार अचानक सबकी नजरों में आ गए।उन्हें किसी की वाहवाही मिली.. तो किसी के ताने। अचानक काफी कुछ बदल गया उनके लिए। लेकिन कुछ दिन में फिर हालातसामान्य होने लगे। तमाशा इसके असर से अछूता था। इसलिए फिर बात आई-गई हो गई। लेकिन ये क्या एक बार फिर अचानक कुछउठा-पटक शुरु हो गई। तमाशे में हालात बदले हुए नजर आने लगे। बातें बननी शुरु हो गईं और अफवाहों का बाजार फिर गर्म हुआ।फिर कुछ होने वाला है.. किसी पर गाज गिरने वाली है.. क्या होगा.. हाय राम, ये क्या हो रहा है। ऐसा कैसे हो सकता है.. मुनीमजी और साहबजी के खबरी भी घबराए हुए थे.. क्योंकि अब कुछ भी हो सकता है। कहीं झूठ तो नहीं.. कहीं सच तो नहीं। जो होगा.. देखा जाएगालेकिन फिर भी मन में डर, घबराहट। और सबका डर रंग लाया। कोई अफवाह नहीं, कोई झूठ नहीं, सब सच। देखते-ही-देखते फिर कई कलाकारों की छंटनी हो गई। लेकिन इस बार इसका असर ज्यादा हुआ। तमाशे में मातम छा गया.. और तमाशे की टीआरपी अचानक गिर गई। बचे हुएकलाकारों में नाराजगी और गुस्सा था। लेकिन किसे कहें.. कैसे कहें। तमाशे के दो पाटों के बीच कई जिंदगियां पिस रही थीं। फिर भीसब खामोश.. खुद को बचाने की जुगत में।<br /></div><br /><div><strong>..जारी है</strong><br /><strong><span class=""></span></strong></div><div><strong>अनु गुप्ता</strong></div><div><strong>14 अगस्त 2009</strong></div>अनु गुप्ताhttp://www.blogger.com/profile/04850936250892615746noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3657486341528295042.post-69711093459440562842009-07-21T09:54:00.000-07:002009-07-21T10:09:55.419-07:00तुझ में नहीं मैं<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjUFH5G5vL7KZNxxnKNk-A6nSyTpSoTqVUo6-VgsVQZXHvbdywPevntQkyq2eg_UW0AMzocoi9OehV80ngqpSaAc3aumKCnNpFAESNf-OVtnvCo2zhk0WghiszzHeAFYaWkYZoszY5UPKp3/s1600-h/2132893-2-girl-alone.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5360961442903740034" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 214px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjUFH5G5vL7KZNxxnKNk-A6nSyTpSoTqVUo6-VgsVQZXHvbdywPevntQkyq2eg_UW0AMzocoi9OehV80ngqpSaAc3aumKCnNpFAESNf-OVtnvCo2zhk0WghiszzHeAFYaWkYZoszY5UPKp3/s320/2132893-2-girl-alone.jpg" border="0" /></a><br /><div>तुझ में, </div><div>दूर कहीं </div><div>भीतर-बाहर की</div><div>गहराइयों में भी.. </div><div><strong>तलाशा खुद को</strong></div><div>अपना वजूद</div><div><span class="">तुझ में</span> ही कहीं </div><div>मन में, </div><div>दिल में, </div><div>और धड़कन में भी </div><div><strong>ढूंढी अपनी आवाज</strong> </div><div>तेरी नजरों में, </div><div>ख्वाबों में, </div><div>कभी बातों में <span class="">भी </span></div><div><strong>सोचा मेरे जिक्र को</strong></div><div>हंसी में,</div><div>नमी में, </div><div>तेरी खामोशी में भी</div><div><strong>नहीं जाना अपने को</strong></div><div><span class="">फिर भी </span></div><div><span class="">तलाशती रही</span></div><div>देर तक.. दूर तक</div><div><span class="">लौट आईं बेबस निगाहें</span></div><div><span class="">क्योंकि </span></div><div><span class="">तुझ में</span></div><div><strong>मैं नहीं.. कहीं नहीं</strong></div><span class=""></span><br /><div><strong><span class=""></span></strong></div><div><strong>अनु गुप्ता</strong></div><div><strong>21 जुलाई 2009</strong></div>अनु गुप्ताhttp://www.blogger.com/profile/04850936250892615746noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-3657486341528295042.post-59306262269973109242009-07-21T06:41:00.000-07:002009-07-21T06:53:04.850-07:00खिलौना जान कर तुम तो... (पहला भाग)<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiyGLrqSnxIiNXnvr_frmuDCIr1Dtfpk6JhGadW9IIglUfVcF28jeGdq06yPJ_7dW8ZBR7Ung3BwmAeZzQIJr-hTUeSZ-pHaXeTNgRoNZIR9D0_hw-aWGxROlSpGDP5h_jZhdavgwmdM0L8/s1600-h/kathputli.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5360910817956751026" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 239px; CURSOR: hand; HEIGHT: 320px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiyGLrqSnxIiNXnvr_frmuDCIr1Dtfpk6JhGadW9IIglUfVcF28jeGdq06yPJ_7dW8ZBR7Ung3BwmAeZzQIJr-hTUeSZ-pHaXeTNgRoNZIR9D0_hw-aWGxROlSpGDP5h_jZhdavgwmdM0L8/s320/kathputli.jpg" border="0" /></a><br /><div><strong>सुनो.. सुनो.. सुनो.. कस्बे में शुरु होगा एक नया तमाशा.. जिसमें आप ले सकते हो हिस्सा.. सुनो.. सुनो.. सुनो.. तो बन जाओ कलाकार और दिखाओ अपना हुनर..</strong><br /><strong></strong><br />ऐसे शुरुआत हुई कस्बे में नए तमाशे की.. इस तमाशे के लिए नया मंच तैयार हुआ और ढोल-नगाड़ों के साथ इसकी खबर पूरे कस्बे में फैल गई। जिसके बाद तमाशे में शामिल होने के लिए कई कलाकार आवेदन करने पहुंचे। मंच के साजों-सामान पर हजारों रुपये खर्च किए गए। तमाशे की तरह इसके कर्ता-धर्ता भी नए थे। सो उन्हें जरा भी अनुभव नहीं था। लिहाजा कर्ता-धर्ता ने तमाशे के कलाकारों को चुनने के लिए मुनीम जी और साहब जी की नियुक्ति की और निश्चिंत हो गए। तमाशे की बागडोर इन दो महानुभावों को मिलकर संभालनी है.. लेकिन दोनों में है अभिमान.. और दोनों ही कर्ता-धर्ता की नजरों में चढ़ना चाहते थे। इसलिए कलाकारों को चुनने में अपने आदमियों का खास ख्याल रखा। भई.. अब जब भाई-भतीजावाद चलेगा.. तो योग्य कलाकारों के साथ कुछ अयोग्य कलाकार भी आएंगे ही। लेकिन असली बात तो उन्हीं में है.. क्योंकि यही अयोग्य कलाकार ही तो तमाशे की असली बागडोर संभालेंगे। अब जनाब.. तमाशे के दौरान परदे के आगे और पीछे की कहानी मुनीम जी और साहब जी दोनों जानना चाहते हैं। सो उन्होंने ऐसे कलाकारों को भी चुना.. जो उनके विश्वासपात्र बनकर रहें।<br /><br />खैर, जोर-शोर से तमाशा शुरु हुआ। कस्बे में चर्चा तो पहले से थी और कुछ उम्दा कलाकारों के साथ साथ मुनीम जी और साहब जी की मेहनत भी रंग लाई। देखते-ही-देखते तमाशा मशहूर होने लगा। कलाकारों में मित्रता हो गई.. हंसी-खुशी दिन बीतने लगे और तमाशे भी खूब जमने लगा।<br /><br />लेकिन ये क्या.. अचानक परदे के पीछे का माहौल बदला सा नजर आने लगा। खुसर-पुसर शुरु हो गई.. कुछ बड़ा होने वाला है.. सभी कलाकार हैरान-परेशान.. अफवाहों का गरम बाजार.. क्या हुआ, क्या वाकई कुछ हुआ। अरे ये क्या.. ऐसा कैसे.. सही तो सुना है ना.. कहीं सुनने में कोई गलती नहीं हुई हो.. नहीं-नहीं बात तो सोलह आने सच है। ऐसा ही हुआ है.. मुनीम जी और साहब जी की आपस में नहीं बनती.. इसका असर तमाशे पर पड़ने लगा.. तमाशे की टीआरपी गिरने लगी.. तो कर्ता-धर्ता भी गंभीर हो गए.. अब मुनीम जी उनका दायां हाथ हैं और साहब जी बायां हाथ.. करें तो क्या करें.. अब ठीकरा तो कहीं न कहीं फोड़ना ही है.. तो चलो कुछ कलाकारों की छुट्टी कर दी जाए। वैसे भी कौन से तीर मार रहे हैं.. लो जी.. देखते ही देखते कलाकारों की छुट्टी कर दी गई।<br /><br /><strong>...जारी है</strong></div>अनु गुप्ताhttp://www.blogger.com/profile/04850936250892615746noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3657486341528295042.post-41001111432697869032009-07-02T09:38:00.000-07:002009-07-02T09:46:51.999-07:00क्या वाकई रास्ता भटक गए हैं ?<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjhMUgcMSRZ-BOXoOdzWJ2-tq3aa-MeZ7pnrQuggMWkRxgvTI97mksl0kB5yfoCSTy7zZ6AYHYQqHn6wiJUH85LojFbDk-mXtXfQ3Q-116bZEnr_yoNXepqeZPcC6_gEtrgyWD-JXFFjtbo/s1600-h/untitled.bmp"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5353904518452436866" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 189px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjhMUgcMSRZ-BOXoOdzWJ2-tq3aa-MeZ7pnrQuggMWkRxgvTI97mksl0kB5yfoCSTy7zZ6AYHYQqHn6wiJUH85LojFbDk-mXtXfQ3Q-116bZEnr_yoNXepqeZPcC6_gEtrgyWD-JXFFjtbo/s320/untitled.bmp" border="0" /></a><br /><div><span class="">'उन्हें</span> रास्ता भटकने से रोकना चाहिए.. लेकिन अब कानून भी उनका साथ दे रहा है।'</div><br /><div>ये वो पहली प्रतिक्रिया थी.. जो आज दिल्ली हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आने के बाद सबसे पहले मुझे सुनाई दी। आज अपने फैसले में दिल्ली हाई कोर्ट ने साफ कर दिया कि.. समलैंगिकता कोई अपराध नहीं है। आपसी रजामंदी से महिला से महिला और पुरुष से पुरुष दोनों ही आपस में संबंध कायम कर सकते हैं। कोर्ट के इस फैसले के तुरंत बाद उन हजारों लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई.. जो अब तक अपराधी होने के डर से अपनी पहचान छिपा कर जी रहे हैं। </div><br /><div>भारतीय दंड संहिता की धारा 377 में समलैंगिकता को अपराध बताया गया है। समलैंगिक लंबे अरसे से इस धारा को खत्म करने की मांग कर रहे थे। आखिर अब कानून ने भी इसे मंजूरी दे दी है.. यानि अब समलैंगिकों को अपनी पहचान छिपाने की जरूरत नहीं। </div><br /><div>समलैंगिकता हमेशा से ही एक गरम मुद्दा रहा है। कुछ वक्त पहले तक ये ऐसा विषय भी था.. जिस पर बात करना गुनाह माना गया। धारा 377 तकरीबन 149 साल पुरानी है। लॉर्ड मैक्यूले ने साल 1860 में इस धारा को भारतीय दंड संहिता में जोड़ा था। यानि इसकी शुरुआत ब्रिटिश राज में हुई। लॉर्ड मैक्यूले ने समलैंगिकता को अप्राकृतिक बताते हुए.. इसे अपराध की श्रेणी में रखा। देश को आजादी मिली लेकिन समलैंगिक तब भी धारा 377 के गुलाम बने रहे। दबी जुबान में धारा का विरोध होता रहा.. लेकिन सरेआम इस पर बात करना भी अच्छा नहीं माना गया। </div><br /><div>डेनमार्क सबसे पहला देश था जिसने साल 1989 में समलैंगिकों को भी आम लोगों जैसे अधिकार दिए। इसके बाद नॉर्वे, स्वीडन और आईलैंड ने भी इसे मान्यता दी। </div><br /><div>भारत में भी धारा 377 पर पुनर्विचार करने की मांग उठती रही। नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन, मानवाधिकार आयोग, योजना आयोग यहां तक कि लॉ कमिशन ऑफ इंडिया ने भी समलैंगिकों के अधिकारों की बात कही। वहीं समाज का एक तबका इसे भारतीय संस्कृति के खिलाफ बताता रहा। हाल ही में दिल्ली, चेन्नई, बेंगलुरु में गे प्राइड परेड आयोजित की गई। जिसके महज दो दिन बाद ही दिल्ली हाई कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया।</div><br /><div>कहीं खुशी की लहर है.. तो विरोध के स्वर भी उठ रहे हैं। लेकिन समलैंगिकों को ये कहना कि.. वो रास्ता भटक गए हैं और ये सामाजिक नजरिए से गलत है.. अब जायज नहीं है। वक्त बदल रहा है.. इसी परिवर्तन के साथ ही हमें समलैंगिकों को भी अपने समाज में जगह देनी ही होगी। क्योंकि समलैंगिक होना रास्ता भटकना नहीं.. ये प्राकृतिक है। अब कानून भी इसे मान रहा है..कि आप सजा के डर से समलैंगिकों के अधिकारों को नहीं छीन सकते। संस्कृति और समाज का डर दिखाकर उन्हें अपने मुताबिक जीने पर मजबूर नहीं कर सकते। </div><br /><div>समलैंगिकता अपराध नहीं है.. ना ही समलैंगिक एलियन्स हैं.. वो इसी समाज का हिस्सा हैं.. और समाज की मुख्यधारा से जुड़कर जीने का उन्हें पूरा अधिकार है। </div><div> </div><div>अनु गुप्ता</div><br /><p> </p>अनु गुप्ताhttp://www.blogger.com/profile/04850936250892615746noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3657486341528295042.post-28969427742050038332009-06-04T10:43:00.000-07:002009-06-04T11:14:41.797-07:00सफर किया या नहीं<strong>दिल्ली की बसों </strong>में सफर तो आपने कई बार किया होगा। हम डीटीसी और ब्ल्यू लाइन दोनों ही तरह के इन महान वाहनों की बात कर रहे हैं। आखिर हैं तो दोनों एक ही ना। एक बड़ी बहन और दूसरी छोटी बहन। क्यों ठीक है ना ?<br /> <strong>खैर हम</strong> पूछ रहे थे कि आपने बस में सफर किया है या नहीं। अगर सफर नहीं किया तो हम दुआ करते हैं कि.. भगवान जल्दी ही आपको भी ये सौभाग्य दे। अरे ! चौंकिए मत, बस में सफर यानि यात्रा करना वाकई सौभाग्य है। इस पर जरा अपनी सूक्ष्म दृष्टि से विचार करिएगा। अब भला ये तो कोई बात नहीं हुई कि.. बस में यात्रा करते हुए भी आप बस इसकी कमियों पर ही ध्यान देते हैं। जनाब, जरा बस की खूबियों पर भी तो गौर फरमाइए। यदि आप ऐसा नहीं करते, तो आप बस में सफर करने वाले सबसे बड़े अज्ञानी हैं। भई, अब अपने नकारात्मक दृष्टिकोण को छोड़िए और जरा दिल्ली की बसों में यात्रा करने के इन फायदों पर नजर डालिए-<br /><strong>-</strong> आप अपनी दिनचर्या में इतना बिजी रहते हैं कि आपको एक्सरसाइज करने का वक्त भी नहीं मिलता। उस पर जंक फूड आपकी सेहत को दुरुस्त करने में कसर नहीं छोड़ता। तो बस का सबसे पहला फायदा यही है कि.. इसमें चढ़ने के लिए आपको थोड़ा-बहुत तो भागना ही पड़ेगा। इससे आपकी एक्सरसाइज भी हो जाएगी और बस में सबसे पहले चढ़ने की प्रैक्टिस भी।<br /><br /><strong>-</strong> अब बात आपकी जेब यानि बचत की। बस में पचास की जगह सत्तर से अस्सी लोगों के होने का सबसे बड़ा फायदा यही है कि.. कंडक्टर की नजर से बचकर आप बिना टिकट के भी यात्रा कर सकते हैं। लेकिन इस विधा में आपको पल-पल की खबर रखनी होगी, वरना पकड़े जाने पर लेने के देने पड़ सकते हैं।<br /><br /><strong>-</strong> लेकिन अगर आप टिकट खरीदना ही चाहते हैं तो.. इसमें आपके पड़ोसी बेमन से ही सही आपकी मदद कर सकते हैं। टिकट लेने की इस प्रक्रिया की लंबाई और वक्त आपके खड़े होने की जगह पर निर्भर करता है।<br /><br /><strong>-</strong> बस का एक और लाभ है-भार मुक्ति। यानि अगर आप खड़े हैं तो अपना सामान अपने सीट वाले पड़ोसी को आदर सहित पकड़ा सकते हैं और अगर वो मना करें तो आपके दूसरे पड़ोसी कब काम आएंगे।<br /><br /><strong>-</strong> बसों का एक फायदा है कि यहां मुफ्त में आपको झूलों (झटके और धक्के) का आनंद भी मिलता है। अरे दोस्त, इसलिए तो बस में जानवरों की तरह सवारी लादी जाती है। इसलिए जब भी बस बस रुकेगी या चलेगी तो आप कई तरह के झूलों का लुत्फ उठा पाएंगे।<br /><br /><strong>-</strong> बस हमें भाईचारा भी सिखाती है। इसी भावना के वशीभूत होकर आप सीट पर बैठने के लिए थोड़ा-सा 'एडजस्ट' कर सकते हैं। कभी किसी महिला के लिए सीट छोड़ने पर भी आपको दुखी नहीं होना चाहिए। अंतर बस इतना है कि.. एडजस्ट कभी आपको करना पड़ेगा तो कभी लोग आपको एडजस्ट करेंगे।<br /><br /><strong>-</strong> बस में झपकी लेने का मजा ही कुछ और है। संसार की सभी चिंताओं को भूलकर आप अपने पड़ोसी के कंधे पर सिर रखकर सो भी सकते हैं। अगर पड़ोसी सिर हटाए, तो क्या हुआ ? फिर सिर टिका दीजिए और अगर बात तू-तू, मैं-मैं पर आ जाए तो, माफी मांग लीजिए। जनाब, अच्छी नींद के बदले माफी मांगने से आप छोटे नहीं हो जाएंगे।<br /><br /><strong>-</strong> और तो और बस मनोरंजन का भी साधन है। अगर दो लोग सीट या कम जगह को लेकर झगड़ा करें तो इससे आपका मनोरंजन भी होगा क्योंकि आनंद की इस चरम सीमा पर आप उन्हें रोकने तो जाएंगे नहीं। यही नहीं आपके पड़ोसी की निजी लेकिन मसालेदार बातें भी आप कान लगाकर आराम से सुन सकते हैं।<br /><br /> <strong>अब बताइए</strong> हैं ना बस का सफर मजेदार ? आपकी सभी सुविधाओं का ख्याल रखा जाता है बस में। यही नहीं बस गाहे-बगाहे आपको ऊपरवाले की याद भी दिला ही देती है। क्या अब भी आप बस में सफर नहीं करना चाहेंगे ? जरूर कीजिए, आखिर ये लुत्फ उठाने का अधिकार आपको भी है। ईश्वर जल्द आपको ये मौका दे और तब हम ड्राइवर से हमारा मतलब है कि भगवान से आपकी मंगल यात्रा के लिए दुआ करेंगे।अनु गुप्ताhttp://www.blogger.com/profile/04850936250892615746noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-3657486341528295042.post-17036845136082236212009-05-24T09:50:00.001-07:002009-05-26T10:21:31.470-07:00नौकरी या इम्तिहान ?<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEioah4p_pPEaSx9C3LkNdyICALqWDrJYwvU5Mlkq4czA4UwgGVUHy5zIQcwCD8vAEOxTvaJljbky19UUZA-ulJhjmfJzd9hKvo1be6y4IodaIBNOUrPCqOz35JECmk1quuEEuMdNGYI_5BJ/s1600-h/dailt-tel-newsroom.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5339440172578549346" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 214px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEioah4p_pPEaSx9C3LkNdyICALqWDrJYwvU5Mlkq4czA4UwgGVUHy5zIQcwCD8vAEOxTvaJljbky19UUZA-ulJhjmfJzd9hKvo1be6y4IodaIBNOUrPCqOz35JECmk1quuEEuMdNGYI_5BJ/s320/dailt-tel-newsroom.jpg" border="0" /></a><br /><div>आजकल मैं अपने इम्तिहान की तैयारी करने की कोशिश कर रही हूं। दरअसल अब तक ऑफिस से छुट्टियां नहीं मिली हैं। इसलिए कोशिश ही कह सकती हूं। हालांकि मेरा मानना यही है कि.. कोशिश ही हमें कामयाब बनाती है। मैं कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से मास कम्युनिकेशन्स में पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही हूं। </div><br /><div><span class=""></span></div><br /><div>खैर, अब मुद्दे की बात.. जिसके लिए ब्लॉग लिख रही हूं। एक और इम्तिहान है.. जिसे रोजाना देती हूं। और दिन के अंत यानि अपनी शिफ्ट के आखिर में यही सोचती हूं कि.. एक और इम्तिहान खत्म हो गया। मैं पास हुई या फेल ? ये इम्तिहान है किसी मीडिया हाउस या चैनल के दफ्तर में एक दिन गुजारने का। मेरी निजी सोच यही है कि.. इससे जुड़े ज्यादातर लोग ही रोजाना इस इम्तिहान में बैठते हैं। ये परीक्षा ही तो है कि.. बेतहाशा दबाव में भी बेहतर काम करने की कोशिश की जाए। चीख-चिल्लाहट और बेवजह शोर को अनसुना करते हुए बस काम किया जाए। या कभी बिना किसी ठोस बात के गुस्सा कर रहे बॉस की डांट सुनी जा। मन में कहीं न कहीं यही बात होती है कि.. शायद आज तो बात बिगड़ी ही समझो। इसलिए दफ्तर में हर एक दिन नए इम्तिहान जैसा है। </div><br /><div></div><br /><div>यूं तो विद्वानों ने जिंदगी को भी इम्तिहान की संज्ञा दी है। ये सही है या गलत.. ये तो आपके निजी अनुभव पर निर्भर करता है। लेकिन इस इम्तिहान के सामने तो जिंदगी भी आसान लगती है। वो बात अलग है कि.. इसने नौकरी को आसान बनाने की जुगत ने जिंदगी को ही मुश्किल कर दिया है। </div><br /><div></div><br /><div>यहां लोगों को नौकरी बचाने के लिए जुगाड़ करते देखा है। अपनी नौकरी सेफ जोन में रखने के लिए दूसरों की नौकरी को मुश्किल में डालते लोगों को भी देखा है। ब्रेकिंग न्यूज के वक्त गुस्से का ऊंचा पारा देखा है। न्यूज रूम की दौड़-भाग में मैं भी शामिल होती हूं। यही दौड़ जिंदगी का हिस्सा बन गई है। <span class="">इसमें हारने का डर नहीं है लेकिन </span>पिछड़ने का ही खतरा हमेशा बना रहता है। आप अव्वल भले ना हों.. लेकिन अव्वल दर्जे के समकक्ष होना भी सुखद लगता है। इसलिए ये इम्तिहान है। और अगर हर बीतते हुए दिन के साथ आपकी नौकरी बची हुई है.. तो यकीनन आप इसमें पास हैं.. क्योंकि ये इम्तिहान ऐसा है.. जिसमें रोजाना फेल होने का डर होता है।</div><br /><div>इस इम्तिहान के लिए मेरे साथ-साथ आपको भी <strong><span style="font-size:130%;">'बेस्ट ऑफ लक'</span> </strong></div><br /><div><strong></strong></div><br /><div><strong></strong></div><br /><div><strong><span style="font-size:180%;"></span></strong></div><br /><div></div>अनु गुप्ताhttp://www.blogger.com/profile/04850936250892615746noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3657486341528295042.post-72164245235446525252009-05-09T10:07:00.000-07:002009-05-09T10:42:17.762-07:00भारत को बचा ले विधाता<strong>जन गण मन अधिनायक </strong><br /><strong>जय है</strong><br /><strong>भारत भाग्यविधाता</strong><br />राष्ट्रगान की इन पंक्तियों को यहां लिखते हुए न तो मैं और न इन्हें पढ़ते हुए आप खड़े होंगे। टेलीविजन पर 26 जनवरी की परेड और 15 अगस्त का कार्यक्रम देखते हुए जब राष्ट्रगान बजता है, तो क्या आप खड़े होते हैं। शायद नहीं, क्योंकि हमें इतना ख्याल ही नहीं रहता। क्या ये राष्ट्रगान का अपमान नहीं है? क्या जवाब देंगे आप? राम गोपाल वर्मा पर उनकी फिल्म रण में राष्ट्रगान से छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया गया। विवाद उठने लगा तो सेंसर ने फौरन गाने को फिल्म से हटाने का निर्देश जारी कर दिया। राष्ट्रगान के साथ छेड़छाड़ तो जरूर की गई है, लेकिन क्या वाकई ऐसा है? क्या उस पैरोडी का एक एक शब्द हकीकत तो बयान नहीं करता।रबिन्द्रनाथ टैगोर ने इसे संस्कृत मिश्रित बंगाली में लिखा था। 27 दिसम्बर 1911 को इंडियन नेशनल कॉंग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में इसे पहली बार गाया गया। जिसके बाद संविधान सभा ने 24 जनवरी 1950 को इसे राष्ट्रगान का दर्जा दिया। इसे गाने का कुल समय 52 सेकंड का होता है।<br /><strong><span class=""></span></strong><br /><strong>जरा गौर करिए </strong><br />जन गण मन अधिनायक जय हे<br />भारत भाग्यविधाता<br />पंजाब सिंध गुजरात मराठा<br />द्राविड़ उत्कल वंग<br />विंध्य हिमाचल यमुना गंगा<br />उच्छल जलधितरंग<br />तव शुभनामे जागे,<br />तव शुभ आशिष मांगे<br />गाहे तव जयगाथा<br />जन गण मंगलदायक जय हे<br />भारत भाग्यविधाता<br />जय हे, जय हे, जय हे<br />जय जय जय जय हे!<br /><span class=""></span><br /><strong>अब देखिए राष्ट्रगान की पैरोडी</strong><br /><span class=""></span><br />जन गण मन रण है, जख्मी हुआ है<br />भारत का भाग्यविधाता<br />पंजाब सिंध गुजरात मराठा<br />एक दूसरे से लड़के मर रहे हैं<br />इस देश ने हमको एक किया<br />और हम देश के टुकड़े कर रहे हैं<br />द्रविड़ उत्कल वंग,<br />खून बहाकर एक रंग का, कर दिया हमने तिरंगा<br />सरहदों पर जंग और गलियों में फसाद रंगा<br />विंध्य हिमाचल यमुना गंगा में तेज़ाब उबल रहा है<br />मर गया सबका सवेरा, जाने कब जिंदा हो आगे<br />फिर भी तव शुभ नाम जागे,<br />तव शुभ आशिष मांगे<br />आग में जलकर चीख रहा है,<br />फिर भी कोई नहीं बचाता<br />गाहे तव जयगाथा<br />देश का ऐसा हाल है, लेकिन आपस में लड़ रहे नेता<br />जन गण मंगलदायक, भारत को बचा ले विधाता<br />जय है या मरण है,<br />जन गण मन रण है<br /><span class=""></span><br />राष्ट्रगान और इस पैरोडी में अंतर तो है और वो अंतर होना लाजमी भी है। रबिन्द्रनाथ टैगोर ने जब राष्ट्रगान लिखा होगा.. तब उन्होंने नहीं सोचा होगा कि.. एक दिन देश की ये हालत होगी। भारत भ्रष्टाचार और आतंकवाद से जूझ रहा है। बावजूद इसके आज भी हम अपने आपसी झगड़ों को ही नहीं भुला पाए हैं। कभी गुजरात दंगों के नाम पर तो कभी मुंबई हमलों के नाम पर राजनीति की रोटियां सेंकी जा रही हैं। हमारी भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। इसके जिम्मेदार हम खुद भी हैं। जब हम अपने अंदर से ही भ्रष्टाचार नहीं मिटा सकें तो देश को सुधारने की कैसे सोच सकते हैं। अमेरिकी अखबार में रिपोर्ट छपती है कि.. भारत गले तक भ्रष्टाचार में डूबा है। इस रिपोर्ट को टेलीविजन पर देख-सुनकर हम आदतन नेताओं और अफसरों को कोसने लगते हैं। लेकिन अपनी बात भूल जाते हैं। अपनी कमजोरियां तब हमें याद नहीं आती। दुनियाभर में भारत को विविधता में एकता वाले देश के रूप मे जाना जाता है। हमारी सदियों पुरानी संस्कृति-सभ्यता हमारी पहचान है। जब वो पहचान भ्रष्टाचार की गंदगी से धुंधला रही है.. तो हमारा ध्यान वहां नहीं जाता। क्या देश का अपमान नहीं है? क्या ये हमारी भावनाओं का अपमान नहीं है? लेकिन हम उसे सुधारने की कोशिश नहीं करते.. क्योंकि उसके लिए पहले हमें खुद को सुधारना होगा। फिल्म रण में राष्ट्रगान में कुछ बदलाव करके.. देश के हालात बयां करने की कोशिश की गई तो... वो हमें अपना, अपनी भावनाओं और राष्ट्रगान का अपमान लग रहा है। इसलिए हंगामा खड़ा कर दिया। अगर गीतकार अपने शब्दों को महज आम गीत की तरह पिरोकर गाना बना देता.. तो क्या हमारा ध्यान उस तरफ जाता। गीत और गीतकार को तारीफ तो जरूर मिल जाती। लेकिन वो ऐसी चोट शायद नहीं कर पाता, जैसी अब कर रहा है। गीतकार के शब्द तब उतने सार्थक नहीं होते.. जितने अब हैं। भले ही इसे छेड़छाड़ कहा जाए.. लेकिन है तो हकीकत ही.. जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। आज देश के हालात देखकर भले ही हम न सुधरे.. लेकिन दिल से आवाज यही उठती है कि.. <strong>'भारत को बचा ले विधाता'</strong>अनु गुप्ताhttp://www.blogger.com/profile/04850936250892615746noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3657486341528295042.post-51437939470585911062008-11-20T23:28:00.000-08:002009-05-30T10:19:29.861-07:00ठंडी आँखें...<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEig7j-rvm-GgCM_vZ3I3W7cOLxovsxiboLXa9WXuImYTJCzP3_OIdxC9TkYHUWqTv9ICLKWALnc10BjAE3nK7iGMcrd_DHbEfMwnH8ZgXTsyphMN8QxFfoFT0WGqftLT8WXoUfyzfSSdSsG/s1600-h/2222.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5341667809959681266" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 146px; CURSOR: hand; HEIGHT: 170px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEig7j-rvm-GgCM_vZ3I3W7cOLxovsxiboLXa9WXuImYTJCzP3_OIdxC9TkYHUWqTv9ICLKWALnc10BjAE3nK7iGMcrd_DHbEfMwnH8ZgXTsyphMN8QxFfoFT0WGqftLT8WXoUfyzfSSdSsG/s320/2222.jpg" border="0" /></a><br /><div>मौकापरस्त हो चुकी हैं आंखे<br />तलाश रहती है इन्हें...<br />नए-नए कुछ तमाशों की,<br />तड़पते-छटपटाते किसी हादसे में...<br />दम तोड़ती आवाजों की,<br />भटकती हैं यहां वहां...<br />सिसकती हुई भावनाओं के पीछे<br />एक नई खबर के लिए<br />दूर तक दौड़ती हैं रास्तों पर...<br />जबरन किसी मुद्दे के पीछे<br />ताकती हैं आसमान को भी...<br />खुद को भिगोने की ख्वाहिश में<br />ढूंढती हैं आसपास ही कहीं...<br />बेबस किस्सों के निशान<br />फिर नई कहानी के लिए<br />गमज़दा हो तो झुक जाती हैं...<br />एक रस्म निभाने को, क्योंकि...<br />मौकापरस्त हो चुकी हैं आंखे</div>अनु गुप्ताhttp://www.blogger.com/profile/04850936250892615746noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3657486341528295042.post-7902241402694401422008-11-20T21:32:00.000-08:002008-11-20T21:38:33.724-08:00जिम्मेदार कौन... ?<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRAzh7sXaVbXsu0gFPsKYt_LVwAFGbSHRdg_gH5lM5dRM0clMC6h5XoTky0GcQfSKNIo3teyUfUE2795E2AA5ZQYoACmqODvyhkXrqbyIGgeU5AEiNUiyQkCv-4L0-dPKByX3JbzsVEQYd/s1600-h/1111.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5270980748555915538" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 147px; CURSOR: hand; HEIGHT: 136px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRAzh7sXaVbXsu0gFPsKYt_LVwAFGbSHRdg_gH5lM5dRM0clMC6h5XoTky0GcQfSKNIo3teyUfUE2795E2AA5ZQYoACmqODvyhkXrqbyIGgeU5AEiNUiyQkCv-4L0-dPKByX3JbzsVEQYd/s200/1111.jpg" border="0" /></a><br /><div>आज एक बार फिर वह कायर साबित हुआ... उसके कदम नहीं उठ सके थे... क्योंकि, वे चार लड़के घोषित बदमाश थे... क्योंकि, उनके पास रिवॉल्वर थी... क्योंकि उसके पास वक्त नहीं था... क्योंकि वह किसी और के झमेले में नहीं पड़ना चाहता था... क्योंकि, जिस युवती के साथ वो लड़के छेड़छाड़ कर रहे थे..., वो उसकी रिश्तेदार या दोस्त नहीं थी। इस घटना को उसने अपने दोस्तों के साथ शेयर किया। पुलिस और सिस्टम को गैर-जिम्मेदार बताया। कुछ दिन बाद ही शहर के एक अखबार में बलात्कार की एक खबर छपी। लेकिन आज वो बहुत रोया, छटपटाया, और... पछताया भी। इस घटना को वह किसी के साथ शेयर नहीं कर सका। आज उसने खुद को कोसा, क्योंकि पहली बार वह उस तकलीफ को महसूस कर सका था, क्योंकि... पीड़ित लड़की उसकी बेटी थी...</div>अनु गुप्ताhttp://www.blogger.com/profile/04850936250892615746noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3657486341528295042.post-65217711354744316692008-08-05T06:08:00.000-07:002008-08-05T06:27:22.639-07:00आशाएं<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjA7Ntao6F-kXHSzt4zAZVKz6Ukwo-l1o9fe-mgBSPjhhEx6dEWMmf8ZDZV_3TXfiE7cDw6hdExK0J1aD8j3cACHQZRI17ieYSsxQmt5ojwG1vy5gLUjlYMLvwSYrypD64NFuetuvRqKou1/s1600-h/ummeed.JPG"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5231023305663908898" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 202px; CURSOR: hand; HEIGHT: 202px" height="227" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjA7Ntao6F-kXHSzt4zAZVKz6Ukwo-l1o9fe-mgBSPjhhEx6dEWMmf8ZDZV_3TXfiE7cDw6hdExK0J1aD8j3cACHQZRI17ieYSsxQmt5ojwG1vy5gLUjlYMLvwSYrypD64NFuetuvRqKou1/s320/ummeed.JPG" width="320" border="0" /></a><br /><div>आज उसे कहीं काम नहीं मिला। पिछले दिन की बची हुई मजदूरी से उसने अपनी झोपड़ी के लिए बल्ब खरीदा, क्योंकि उसकी पत्नी को कपड़े सीने में कठिनाई होती थी। वह निराश नहीं था। आने वाले कल के लिए उसके मन में '<span class="">उम्मीद'</span> थी। उसे उम्मीद थी... अपने बच्चों के अच्छे भविष्य की। विश्वास था उसे कि... उसके बेटे को नौकरी जरूर मिलेगी। रात को बाजरे की रोटी और प्याज खाकर 'अच्छी <span class="">नींद'</span> सोया, क्योंकि नेताजी ने कहा था कि... इस बार चुनाव के बाद सभी को रोटी, कपड़ा, मकान और उचित काम मिलेगा। आने वाले इसी अच्छे कल की आशा में वह इस दुनिया से विदा हो गया। पर उसकी '<span class="">आशाएं'</span>... आज भी पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती जा रही हैं... "ज़िंदा हैं..."</div>अनु गुप्ताhttp://www.blogger.com/profile/04850936250892615746noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-3657486341528295042.post-34894683764761223802008-06-25T08:59:00.000-07:002008-06-25T09:06:10.839-07:00"बदले-से रिश्ते"पूछा एक दिन मैंने.. खुद,<br />अपने ही 'साए' से<br />क्यों बढ़ गई हैं दूरियां...<br />क्यों रिश्ते हुए <strong>पराए</strong> से?<br />प्यार नाम का शब्द नहीं है...<br />रिश्तों की गहराई में,<br />दिख रहे हैं सारे रिश्ते...<br />हर पल कुछ <strong>घबराए</strong> से।<br /><strong>दूरियां</strong> बढ़ती जा रही हैं...<br />सागर की लम्बाई में,<br />दूर होता जा रहा जीवन...<br />अपनों की परछाई से।<br />व्योम जितनी ऊंचाई हैं और...<br />बिखर रहे हैं रिश्ते सभी,<br />ठिठुर रही हैं रिश्तों की गर्माहट,<br />कैसे इन सर्द हवाओं से।<br />कारण पूछा इस सबका तो...<br />बोला कुछ <strong>ठंडाई</strong> से,<br /><strong>कड़वाहट</strong> बढ़ती जा रही है...<br />रिश्ते हो गए <strong>स्वार्थी</strong>-से...<br />तोले जाते हैं अब तो ये...<br />पैसों की ही <strong>ताकत</strong> से।<br /><strong>फासलें</strong> सौ-सौ मीलों के हैं....<br /><strong>इसलिए रिश्ते हुए पराए से।</strong>अनु गुप्ताhttp://www.blogger.com/profile/04850936250892615746noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3657486341528295042.post-62646170862346544792008-06-24T09:03:00.000-07:002008-06-24T09:25:04.533-07:00"मेरी दिल्ली बदल रही है"<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj2X_Ghm9ifKp1QR95T_pnl9njyK-Gm2WwQstDksj_HKgxwodVXW88i_yI8q9SFvZllQKGusn52sQ7WRLQtmZwWcY5jLbxj70bw_aQEmgSCHkcIyyGlULgRhfd-tnI7H52onwWvHxo1p6bU/s1600-h/scan.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5215482842594034402" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 281px; CURSOR: hand; HEIGHT: 176px" height="229" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj2X_Ghm9ifKp1QR95T_pnl9njyK-Gm2WwQstDksj_HKgxwodVXW88i_yI8q9SFvZllQKGusn52sQ7WRLQtmZwWcY5jLbxj70bw_aQEmgSCHkcIyyGlULgRhfd-tnI7H52onwWvHxo1p6bU/s320/scan.jpg" width="320" border="0" /></a><br /><br /><div align="justify"><strong>मेरी दिल्ली बदल रही है।</strong> जी नहीं...... ये मैं नहीं दिल्ली सरकार के होर्डिंग्स कह रहे हैं। दिल्ली ख़ासतौर पर साउथ दिल्ली की सड़कों पर आजकल आप भी दिल्ली के बदलने की कहानी देख सकते हैं। "मैट्रो, लो फ्लोर डीटीसी बसें, बेहतरीन मॉल्स..... हाई-वे..... सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पिटल....." और भी बहुत कुछ. दिल्ली वाकई बदल रही है। एक सरसरी नज़र से देखें तो दिल्ली सरकार के दावों में दम तो है। लेकिन ये दावे एक हवा से भरे गुब्बारे की तरह ही है.... सो कुछ दिन में हवा निकल ही जाएगी. वैसे विधानसभा चुनाव से थोड़ा पहले सरकार का दिल्ली के बदलने का दावा करना....... याद दिला देता है साल २००३ की..... इंडिया शाइनिंग के होर्डिंग्स जगह-जगह नज़र आ रहे थे.। अख़बारों और छोटे पर्दे पर तत्कालीन सरकार के ये दावे उसके अति आत्मविश्वास को दिखा रहे थे। एनडीए को यकीन हो चला था कि एक बार फिर वही सत्ता पर काबिज होंगे......लेकिन अफसोस कि इंडिया शाइनिंग का नारा एनडीए के भविष्य को शाइन नहीं कर सका। आज दिल्ली सरकार भी काफी हद तक ऐसे ही रास्ते पर चलती दिखाई दे रही है। इसमें कोई शक नहीं है कि.... दिल्ली बदली है..... उसका रंग-ढंग, चाल और जीवनशैली भी बदल गई है। मैट्रो वाकई एक अचीवमेंट है..... लेकिन क्या ये अचीवमेंट समाज के हर तबके की है? शायद नहीं..... और हो भी नहीं सकती, क्योंकि जब हाथ की उंगलियां ही बराबर नहीं होती तो.. समाज का हर व्यक्ति कैसे बराबर हो सकता है? सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पिटल दिल्ली की तस्वीर बदलते हैं....... लेकिन अगर अपने घर के पास के ही एक सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पिटल..... यानि राजीव गांधी सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पिटल की बात करुं तो आज तक उसकी कंस्ट्रक्शन ही पूरी नहीं हुई....... उदघाटन हुए लम्बा अरसा बीत चुका है..... लेकिन न तो वहां जरूरी मशीनें हैं और न ही डॉक्टर्स। नगर निगम के स्कूलों की हालत किसी से नहीं छिपी। </div><div align="justify"><br /></div><div align="justify">सरकार ने मिड डे मील योजना शुरु की ताकि ज्यादा से ज्यादा बच्चे स्कूल चले आएं..... ऐसा शायद हुआ भी....... एक वक्त के निश्चित खाने का लालच बच्चों को स्कूल तक खींच लाया..... लेकिन उन्हें पढ़ाई के लिए लालची नहीं बना पाया..... ये राय दिल्ली नगर निगम के सभी स्कूलों पर लागू नहीं होती.... हां, ये बात अलग है कि ज्यादातर स्कूलों की हालत बदतर है..... जहां इंस्पैक्शन से पहले टीचर्स बच्चों को सिलेबस की कुछ ख़ास बांते रटा देते हैं..... ताकि खुद टीचर्स की क्लास न लगे।</div><div align="justify"><br /></div><div align="justify">दिल्ली बदल रही है...... आप दूर क्यों जाते हैं..... यमुना नदी को ही देखिए, कितना बदल गई है। पहले उसमें पानी थोड़ा और ज्यादा था....... अब और कम हो गया है.... दुख यही है कि दिल्ली तो बदल गई पर दिल्लीवाले आजतक नहीं बदले..... लिहाजा उनकी खोखली श्रद्धा का खामियाजा यमुना को भुगतना पड़ रहा है। हां, ये बात अलग है कि यमुना की सूरत बदलने के नाम पर अब तक कई करोड़ रुपये हज़म हो चुके हैं। </div><div align="justify"><br /></div><div align="justify">दिल्ली तो बदल ही रही है..... बदलाव को कौन रोक सकता है...... प्रकृति का स्वाभाविक नियम है बदलाव.... और अब तो दिल्ली को और तेजी से बदलना पड़ेगा, आखिर २०१० में कॉमनवेल्थ गेम्स जो होने वाले हैं...... कम से कम इसी बहाने कुछ लोगों को रोज़गार तो मिला ही हुआ है..... एशियाड विलेज (जहां ये खेल होने हैं) की कंस्ट्रक्शन के कारण.... सो दिल्ली चाहे जितनी बदले....... इन लोगों के दिन तो फिलहाल बदले ही हुए हैं......</div>अनु गुप्ताhttp://www.blogger.com/profile/04850936250892615746noreply@blogger.com3