फिर वही उथल-पुथल,
विचारों के सागर में..
फिर वही हलचल
स्वयं पर प्रश्नचिह्न,
स्वयं ही देती उत्तर..
फिर वही हलचल
हां.. बहकते हैं कभी
मेरे भी विचार,
तब जूझती हूं मैं भी..
अपने ही अंतरद्वंद से,
हूक उठाती है मन में..
फिर वही हलचल
स्वयं में उलझी रहूं..
या प्रश्नों को सुलझाऊं,
क्यों नहीं बीत जाता..
बीता हुआ हर एक पल
यादों में तड़पती है,
फिर वही हलचल,
हर लम्हा, हर पल
बस यही हलचल
अनु गुप्ता
20 जून 2010