Tuesday, August 5, 2008

आशाएं


आज उसे कहीं काम नहीं मिला। पिछले दिन की बची हुई मजदूरी से उसने अपनी झोपड़ी के लिए बल्ब खरीदा, क्योंकि उसकी पत्नी को कपड़े सीने में कठिनाई होती थी। वह निराश नहीं था। आने वाले कल के लिए उसके मन में 'उम्मीद' थी। उसे उम्मीद थी... अपने बच्चों के अच्छे भविष्य की। विश्वास था उसे कि... उसके बेटे को नौकरी जरूर मिलेगी। रात को बाजरे की रोटी और प्याज खाकर 'अच्छी नींद' सोया, क्योंकि नेताजी ने कहा था कि... इस बार चुनाव के बाद सभी को रोटी, कपड़ा, मकान और उचित काम मिलेगा। आने वाले इसी अच्छे कल की आशा में वह इस दुनिया से विदा हो गया। पर उसकी 'आशाएं'... आज भी पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती जा रही हैं... "ज़िंदा हैं..."

4 comments:

सुबोध said...

बेहतरीन...शायद यही उम्मीद है जिसे लिए हम जिए जा रहे हैं

Unknown said...

good,well done

अविनाश वाचस्पति said...

आशा में जीवन है
या जीवन ही आशा है
क्‍या आशा की परिभाषा है
परिभाषा की क्‍या परिभाषा है
हमको तो वही भाता है
जो सबको भाव बताता है
भाव का समझना ही
आशा है, विश्‍वास है।

http://www.azad_parindey.blogspot.com said...

ye acha hai shayad kuch sharpness ki jarurat thi lekin good...kalpna thik hai lekin original likha hai..thoda soch par majboor karta hai words bhi ache use kiye hai