आजकल मैं अपने इम्तिहान की तैयारी करने की कोशिश कर रही हूं। दरअसल अब तक ऑफिस से छुट्टियां नहीं मिली हैं। इसलिए कोशिश ही कह सकती हूं। हालांकि मेरा मानना यही है कि.. कोशिश ही हमें कामयाब बनाती है। मैं कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से मास कम्युनिकेशन्स में पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही हूं।
खैर, अब मुद्दे की बात.. जिसके लिए ब्लॉग लिख रही हूं। एक और इम्तिहान है.. जिसे रोजाना देती हूं। और दिन के अंत यानि अपनी शिफ्ट के आखिर में यही सोचती हूं कि.. एक और इम्तिहान खत्म हो गया। मैं पास हुई या फेल ? ये इम्तिहान है किसी मीडिया हाउस या चैनल के दफ्तर में एक दिन गुजारने का। मेरी निजी सोच यही है कि.. इससे जुड़े ज्यादातर लोग ही रोजाना इस इम्तिहान में बैठते हैं। ये परीक्षा ही तो है कि.. बेतहाशा दबाव में भी बेहतर काम करने की कोशिश की जाए। चीख-चिल्लाहट और बेवजह शोर को अनसुना करते हुए बस काम किया जाए। या कभी बिना किसी ठोस बात के गुस्सा कर रहे बॉस की डांट सुनी जा। मन में कहीं न कहीं यही बात होती है कि.. शायद आज तो बात बिगड़ी ही समझो। इसलिए दफ्तर में हर एक दिन नए इम्तिहान जैसा है।
यूं तो विद्वानों ने जिंदगी को भी इम्तिहान की संज्ञा दी है। ये सही है या गलत.. ये तो आपके निजी अनुभव पर निर्भर करता है। लेकिन इस इम्तिहान के सामने तो जिंदगी भी आसान लगती है। वो बात अलग है कि.. इसने नौकरी को आसान बनाने की जुगत ने जिंदगी को ही मुश्किल कर दिया है।
यहां लोगों को नौकरी बचाने के लिए जुगाड़ करते देखा है। अपनी नौकरी सेफ जोन में रखने के लिए दूसरों की नौकरी को मुश्किल में डालते लोगों को भी देखा है। ब्रेकिंग न्यूज के वक्त गुस्से का ऊंचा पारा देखा है। न्यूज रूम की दौड़-भाग में मैं भी शामिल होती हूं। यही दौड़ जिंदगी का हिस्सा बन गई है। इसमें हारने का डर नहीं है लेकिन पिछड़ने का ही खतरा हमेशा बना रहता है। आप अव्वल भले ना हों.. लेकिन अव्वल दर्जे के समकक्ष होना भी सुखद लगता है। इसलिए ये इम्तिहान है। और अगर हर बीतते हुए दिन के साथ आपकी नौकरी बची हुई है.. तो यकीनन आप इसमें पास हैं.. क्योंकि ये इम्तिहान ऐसा है.. जिसमें रोजाना फेल होने का डर होता है।
इस इम्तिहान के लिए मेरे साथ-साथ आपको भी 'बेस्ट ऑफ लक'
1 comment:
Harsh reality and fear of being rejected!
Future moments to relish!
It is life, with all its colours,
Good luck to you!
Post a Comment