बारिश की..
एक अलसाई सुबह में,
मैं तरसती हूं..
जागने में आनाकानी के लिए,
मां की एक झड़प के लिए,
भीगे पत्तों, गीली ज़मीन
पर..
अपना नाम उकेरने के लिए।
माटी की सौंधी महक,
तेल की महक के लिए,
एक गरम प्याला
अदरक-इलायची वाला..
और
मद्धम-सी धुनों के लिए।
मैं तरसती हूं अब
उस एक दिन के लिए..
अनु गुप्ता
2 सितंबर 2009
10 comments:
अति सुन्दर रचना है ।
बहुत सुन्दर!!
भावनाओं का सैलाब गुड
कितनी सही बात..हम मे से कितने ही तरसते हैं ऐसे ही..जबर्दस्त!
मां की एक झड़प' का इंतजार ---
बहुत खूब
बेहतरीन
bahut hi sundar rachana
बहुत खुब, लाजवाब रचना.........
बहुत सुन्दर रचना.
आपकी रचना में रिश्तों की महक है
भावनाओं की अच्छी अभिव्यक्ति है...
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