जब ना रहे साथ,
और
खत्म हो हर बात
कह देना चांद से..
उसकी
चांदनी हमने देखी नहीं
कह देना बाग से..
उसमें
फूल हमारा खिला नहीं..
जब घिर आए रात,
और
बिगड़े हों हालात
कह देना रास्तों से..
उनसे
हम गुजरे नहीं
कह देना साज से..
उसमें
हमारी आवाज नहीं
जब मर जाए जज़्बात
और
जिंदगी लगे आघात
कह देना चाहों से..
उन्हें
हमारी ख्वाहिश नहीं
और कह देना आहों से..
उनमें
हमारा दर्द नहीं
जब भूलें हर मुलाकात..
कह देना ये बात
बस.. कह देना
अनु गुप्ता
16 सितंबर 2009
5 comments:
और कह देना आहों से..
उनमें
हमारा दर्द नहीं
जब भूलें हर मुलाकात..
कह देना ये बात
बस.. कह देना
gehre jazbaat liye khubsurat rachana badhai
वाह-वाह क्या बात है। बहुत खुब, लाजवाब रचना। बधाई
दिल की बात...
hi Anu,this is vineet kumar singh. I did my internship in the month of may and june in india news. I think now u can recognise me. U write very good poems & this is one of them. ok bye.............
बस कह देना...तीन शब्दों में कितना कुछ कहा आपने...बहुत खूबसूरत...
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