Friday, September 24, 2010

मुझे यकीन नहीं


फिर भी
मुझे यकीन नहीं
बाहं छुड़ाकर,
तुम लौट तो गए
ठहरे नहीं,
ना पुकारा मुझे
दर्द छोड़कर,
तुम लौट ही गए
फिर भी
मुझे यकीन नहीं
क्या तुम ही थे
वो
कभी मिले थे
कहीं
सब भूलकर,
तुम लौट तो गए
मुझे यकीन नहीं
बस
इतना ही सफर
या
ना मंजिल ना डगर,
बीच राह छोड़कर
तुम चले तो गए
फिर भी
मुझे यकीन नहीं
खामोश-सा
बेकरार हर लम्हा
बेसब्र सवाल
क्यों
क्यों
टूटकर
मुझे तोड़कर
तुम चले तो गए
फिर भी
मुझे यकीन नहीं

अनु गुप्ता
24 सितंबर 2010