Tuesday, May 27, 2008

बढ़ गया है राजस्थान का तापमान....


पिछले पांच दिनों से राजस्थान में जो कुछ भी चल रहा है वो किसी के लिए राजनीति है तो किसी के लिए उसके जायज अधिकारों की मांग। लेकिन इतना जरूर है कि इस आंदोलन के दौरान भड़की हिंसा में जितने लोगों की जानें गईं.... वो सभी आम लोग थे, उनमें न तो कोई सत्ता से सरोकार रखता था और न ही किसी नामी खानदान से। वो वही लोग थे जिन्हें सत्ता के लोग अक्सर उनके अधिकारों के नाम पर उकसाते हैं और वो बस कमर कस कर तैयार हो जाते हैं मोर्चा संभालने के लिए। राजस्थान में जो कुछ भी हो रहा है वो भी कहीं न कहीं घटिया राजनीति का ही एक हिस्सा है। बात अगर आरक्शण की की जाए तो वह तब गलत नहीं कहा जाएगा जबकि समाज के सबसे उपेक्शित वर्ग के लिए हो। राजस्थान में गूजर समुदाय सभी पार्टियों के लिए एक बड़ वोट बैंक है। और राजस्थान में ही गूजरों की स्थिति दूसरी कई जातियों से काफी बेहतर है। तो फिर ऐसे में कोटे की बात कहां तक सही है? गूजर समुदाय पिछले कुछ सालों से अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग कर रहा है। मांग भी सिर्फ इसलिए ताकि नौकरियों में बेहतर अवसर मिल सकें। वहीं इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने इस समुदाय से वोटों के बदले जनजाति का दर्जा दिए जाने का भी वादा किया था। और अब जबकि ऐसा नहीं हुआ तो गूजरों का गुस्सा भड़क उठा है। धोखा मिलने पर गुस्सा आना जायज है.... लेकिन पटरियों को उखाड़ना या हिंसक प्रदर्शन करना कहां तक सही है? अगर ये आंदोलन उग्र नहीं हुआ होता तो शायद इतने लोगों की जानें नहीं जाती। मगर ऐसा नहीं हुआ.... नतीजा ३७ मासूम लोग मारे गए। गूजर आंदोलन के कारण अब तक कुल ६३ लोगों की मौत हो चुकी है। ये लोग पटरियों पर कब्जा जमाए बैठे हैं..... ट्रेनों की आवाजाही बंद है। उस पर मुख्यमंत्री ने लोगों की हिम्मत तोड़ने के लिए कमांडो एक्शन ले लिया। उनके इस कदम ने गूजरों को और भड़का दिया है..... आज इस आंदोलन की लपटें दूसरें राज्यों में भी उठने लगी हैं। मुख्यमंत्री से स्थिति नहीं संभली तो उन्होंने इसे केन्द्र का मुद्दा बता दिया। मतलब एक बार फिर राजनीति शुरु हो चुकी है। तो शायद एक बार फिर ये मामला कुछ दिन के बाद शांत हो जाएगा और फिर अचानक एक दिन दोबारा शुरु भी हो जाएगा। लेकिन आरक्शण एक ऐसा मुद्दा है जो दिन पर दिन गंभीर होता जा रहा है। हाल ही में ओबीसी वर्ग को २७ फीसदी कोटे को केन्द्र सरकार की मंजूरी मिली है। इसका विरोध शांत भी नहीं हुआ है.... कहीं ऐसा न हो कि एक विरोध और शुरु हो जाए। केन्द्र सरकार भी आगामी चुनावों को देखते हुए वोट बैंक को अपने पाले में करने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहती। बहरहाल ये तापमान तो एक दिन कम हो जाएगा लेकिन तब तक पार्टियों को इस पर राजनीति का खेल खेलने का पूरा मौका भी मिल जाएगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार इस राजनीति का पूरा नहीं तो थोड़ा फायदा जरूरतमंद लोगों को मिल सकेगा या कम से कम उन लोगों को ही जो अपने घर-परिवार को छोड़कर राजस्थान की तपती गर्मी में सड़कों और पटरियों पर बिछे पड़े हैं।

1 comment:

सुबोध said...

चलिए आपकी चिंता का असर हुआ... और गुर्जरों का मना लिया गया...