दिल्ली की बसों में सफर तो आपने कई बार किया होगा। हम डीटीसी और ब्ल्यू लाइन दोनों ही तरह के इन महान वाहनों की बात कर रहे हैं। आखिर हैं तो दोनों एक ही ना। एक बड़ी बहन और दूसरी छोटी बहन। क्यों ठीक है ना ?
खैर हम पूछ रहे थे कि आपने बस में सफर किया है या नहीं। अगर सफर नहीं किया तो हम दुआ करते हैं कि.. भगवान जल्दी ही आपको भी ये सौभाग्य दे। अरे ! चौंकिए मत, बस में सफर यानि यात्रा करना वाकई सौभाग्य है। इस पर जरा अपनी सूक्ष्म दृष्टि से विचार करिएगा। अब भला ये तो कोई बात नहीं हुई कि.. बस में यात्रा करते हुए भी आप बस इसकी कमियों पर ही ध्यान देते हैं। जनाब, जरा बस की खूबियों पर भी तो गौर फरमाइए। यदि आप ऐसा नहीं करते, तो आप बस में सफर करने वाले सबसे बड़े अज्ञानी हैं। भई, अब अपने नकारात्मक दृष्टिकोण को छोड़िए और जरा दिल्ली की बसों में यात्रा करने के इन फायदों पर नजर डालिए-
- आप अपनी दिनचर्या में इतना बिजी रहते हैं कि आपको एक्सरसाइज करने का वक्त भी नहीं मिलता। उस पर जंक फूड आपकी सेहत को दुरुस्त करने में कसर नहीं छोड़ता। तो बस का सबसे पहला फायदा यही है कि.. इसमें चढ़ने के लिए आपको थोड़ा-बहुत तो भागना ही पड़ेगा। इससे आपकी एक्सरसाइज भी हो जाएगी और बस में सबसे पहले चढ़ने की प्रैक्टिस भी।
- अब बात आपकी जेब यानि बचत की। बस में पचास की जगह सत्तर से अस्सी लोगों के होने का सबसे बड़ा फायदा यही है कि.. कंडक्टर की नजर से बचकर आप बिना टिकट के भी यात्रा कर सकते हैं। लेकिन इस विधा में आपको पल-पल की खबर रखनी होगी, वरना पकड़े जाने पर लेने के देने पड़ सकते हैं।
- लेकिन अगर आप टिकट खरीदना ही चाहते हैं तो.. इसमें आपके पड़ोसी बेमन से ही सही आपकी मदद कर सकते हैं। टिकट लेने की इस प्रक्रिया की लंबाई और वक्त आपके खड़े होने की जगह पर निर्भर करता है।
- बस का एक और लाभ है-भार मुक्ति। यानि अगर आप खड़े हैं तो अपना सामान अपने सीट वाले पड़ोसी को आदर सहित पकड़ा सकते हैं और अगर वो मना करें तो आपके दूसरे पड़ोसी कब काम आएंगे।
- बसों का एक फायदा है कि यहां मुफ्त में आपको झूलों (झटके और धक्के) का आनंद भी मिलता है। अरे दोस्त, इसलिए तो बस में जानवरों की तरह सवारी लादी जाती है। इसलिए जब भी बस बस रुकेगी या चलेगी तो आप कई तरह के झूलों का लुत्फ उठा पाएंगे।
- बस हमें भाईचारा भी सिखाती है। इसी भावना के वशीभूत होकर आप सीट पर बैठने के लिए थोड़ा-सा 'एडजस्ट' कर सकते हैं। कभी किसी महिला के लिए सीट छोड़ने पर भी आपको दुखी नहीं होना चाहिए। अंतर बस इतना है कि.. एडजस्ट कभी आपको करना पड़ेगा तो कभी लोग आपको एडजस्ट करेंगे।
- बस में झपकी लेने का मजा ही कुछ और है। संसार की सभी चिंताओं को भूलकर आप अपने पड़ोसी के कंधे पर सिर रखकर सो भी सकते हैं। अगर पड़ोसी सिर हटाए, तो क्या हुआ ? फिर सिर टिका दीजिए और अगर बात तू-तू, मैं-मैं पर आ जाए तो, माफी मांग लीजिए। जनाब, अच्छी नींद के बदले माफी मांगने से आप छोटे नहीं हो जाएंगे।
- और तो और बस मनोरंजन का भी साधन है। अगर दो लोग सीट या कम जगह को लेकर झगड़ा करें तो इससे आपका मनोरंजन भी होगा क्योंकि आनंद की इस चरम सीमा पर आप उन्हें रोकने तो जाएंगे नहीं। यही नहीं आपके पड़ोसी की निजी लेकिन मसालेदार बातें भी आप कान लगाकर आराम से सुन सकते हैं।
अब बताइए हैं ना बस का सफर मजेदार ? आपकी सभी सुविधाओं का ख्याल रखा जाता है बस में। यही नहीं बस गाहे-बगाहे आपको ऊपरवाले की याद भी दिला ही देती है। क्या अब भी आप बस में सफर नहीं करना चाहेंगे ? जरूर कीजिए, आखिर ये लुत्फ उठाने का अधिकार आपको भी है। ईश्वर जल्द आपको ये मौका दे और तब हम ड्राइवर से हमारा मतलब है कि भगवान से आपकी मंगल यात्रा के लिए दुआ करेंगे।
5 comments:
न ही करना पडे तो बेहतर है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
हां ये तो है मैने तो दोनो सवारियों की मजा लिया है..इस खूबियों से मेरा भी तारुफ हो चुका है..अच्छा है
अच्छा लिखा है... औऱ आज से पहले कभी मैने किसी बस को इस तरह से नहीं देखा था... और न ही ये महसूस किया था... वैसे भगवान न करें कि मुझे ये सब दोबारा महसूस करना पड़े...
अमित कुमार यादव
हमारी यात्रा मंगलमय हो.....आपने रोमांचक सफ़र का अहसास दे दिया....बाकि अच्छा-बुरा तो सब जगह है....है ना.....आपको धन्यवाद...चुटीली रचना के आस्वादन के लिए....!!
aapki yatra chitran dekhkar to mujhe ehsaas ho gaya ki Metro tk aane mai. mai kitna hard work kar leta hu.
bhala bas k darwaje par latk kar yatra karna har kisi ke bus ki baat thodi hai..... wo to mere jaise hi kuchh log karte hai. jo apni sehat ka khayal rakhkar bheed bhari bus mai jana hi pasand karte hai.
ise kehte hai 1 teer 2 nishane..
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