
मैं तुम्हें नहीं जानती... जो तुम्हारे साथ बीता वो भी नहीं जानती.. कुछ सुना है और कुछ पढ़ा है तुम्हारे बारे में.. तुम्हारे दर्द को फिर भी मैं नहीं समझ पाई.. आज फिर तुम्हारे बारे में कुछ सुना.. तो दिमाग में एक ही बात कौंधी.. वो ये कि.. तुम जीत जाना। इस बार जीत तुम्हारी हो। बहुत साल पहले जब तुम हार गई थीं.. पहले एक भेड़िए से और फिर देश के कानून से। क्योंकि तुम कानून को अपनी आपबीती का सबूत नहीं दे पाईं थीं। तुम पर क्या कुछ बीता इसका सबूत तुमसे मांगा गया। हैरानी है कि कानून को ना तो तुम नजर आईं और ना तुम्हारा निर्जीव शरीर। जिसमें दिल तो धड़क रहा था लेकिन कोई हलचल नहीं थी। तुम कैसे सबूत देतीं। कौन तुम्हारी बात मानता। जब तुम ही किसी को नजर नहीं आईं तो तुम्हारा सबूत किसे नजर आता। तुम हारी नहीं, तुम्हें जानबूझकर हरा दिया गया। जो सपने तुमने देखे वो भी अधूरे रह गए। फिर भी मैं तुम्हारा दर्द नहीं समझ पाती। कुछ दिन पहले गुजारिश देखी। तब जिंदगी के बिना जिंदगी जीते शख्स को देखकर आंखें भर आईं थीं। उस दर्द को हल्का-सा महसूस किया था। लेकिन वो सिर्फ एक कहानी थी। मगर तुम तो हकीकत हो। जब बेरहमी से तुम्हें जिंदगी से दूर कर दिया गया.. लेकिन बदकिस्मती ने तुम्हें मौत भी नहीं दी। बदनसीबी ने भी तुम्हें हरा दिया। तुम तड़पती रही हो.. पर कभी किसी से कुछ कह नहीं सकी। अरुणा, इतना दर्द किसी से कहे बिना तुमने कैसे सह लिया। तुम तो उस शख्स को कोस भी नहीं पाईं.. जो तुम्हें इस हाल में पहुंचाने का जिम्मेदार है। तुम चीख भी नहीं पाईं। तुम्हारे साथ क्या हुआ, उस सबसे तुम अनजान हो गईं। पता नहीं इतना दर्द तुमने अपने अंदर कैसे समेट लिया। तुम्हारी सिसकियों की आवाज भी खो गई। तुम बहुत हिम्मती हो अरुणा, सचमुच तुम्हारी हिम्मत की दाद देती हूं। तुम्हें शायद किसी से शिकायत नहीं। 27 नवंबर 1973 की उस रात क्या हुआ तुम नहीं जानती। तुमने सब सह लिया। सब कुछ अपने भीतर समेट लिया। तुम खामोश लड़ती रहीं। फिर भी तुमने शिकायत नहीं की। अरुणा, गुजारिश का ईथन भी जिंदगी से हार गया था। उसे क्वाड्रप्लीजिक था, मतलब उसके शरीर में गर्दन से नीचे का पूरा हिस्सा बेकार हो गया थी। फिर उसने अपनी जिंदगी की आखिरी लड़ाई लड़ी। उसने अपने लिए वो मांगा, जिसका इंतजार तुम पिछले 37 साल से कोमा में होगी। इच्छा मृत्यु, हमारे देश में इसके लिए कोई कानून नहीं है ना, तुम्हें शायद पता होगा। हां तुम्हें जरूर पता होगा। आज तुम जिस हालत में हो उसमें पहुंचने से पहले तुम्हें भी पता होगा इच्छा मृत्यु के बारे में। है ना अरुणा... तुम वेजिटेटिव स्टेज में हो.. तुम्हारा शरीर निष्क्रिय हो चुका है.. लेकिन अरुणा तुम्हारा दिला भी धड़कता है ना। जानती हो गुजारिश में ईथन ने अपनी इच्छा मृत्यु के लिए लड़ाई लड़ी थी। वो भी अपनी जिंदगी से हारने लगा था। 14 साल जड़ता भरी जिंदगी ने उसके दिमाग को भी जड़ कर दिया था। वो भी मुक्ति चाहता था। इसलिए उसने यूथनेश्यिया यानि मर्सी किलिंग के लिए अपील की। उसने अदालत से अपने लिए मौत मांगी। देश के कानून से अपने लिए मुक्ति मांगी। पर तुम तो ये भी नहीं कर सकतीं अरुणा.. तुम इतनी मजबूर हो जाओगी कभी, ऐसा तुमने कब सोचा होगा। जिन आंखों से तुमने दुनिया जीतने के सपने देखे होंगे, आज वो आंखें सूनी पड़ी हैं। तुम क्यों बोलती नहीं अरुणा, काश तुम बोल पातीं। अपने साथ हुई ज्यादती को दुनिया को बता पातीं। लेकिन देश का कानून फिर भी तुम्हें इंसाफ दिलाने की गारंटी नहीं देता। अरुणा रामचन्द्र शानबाग, तुम्हारा नाम है। अपना नाम तो तुम पहचानती हो ना अरुणा। जानती हो आज देश की सबसे बड़ी अदालत ने तुम्हारे लिए एक कमेटी बनाई है। जिसके तीन डॉक्टर तुम्हारा फैसला करेंगे। तुम अपनी जिंदगी भी अपनी तरह नहीं जी पाईं और अब मौत के लिए भी तुम दूसरों पर निर्भर हो गई हो। कितनी बेबसी, ऐसा तो तुमने कभी सोचा नहीं होगा अरुणा। तुम्हारी मौत के लिए लड़ाई लड़ी जा रही है। इच्छा मृत्यु के लिए ताकि तुम आजाद हो सको इस बेबसी से.. लाचारी की इस जिंदगी से। हां सच अरुणा, बस इतनी ही दुआ है... तुम जीत जाना अरुणा, तुम जीत जाना। इस बार तुम सचमुच जीत जाना ताकि उस जिंदगी से मुक्त हो सको, जिसे तुमने जिया भी नहीं। प्लीज इस बार जरूर जीत जाना अरुणा ।
अनु गुप्ता
24 जनवरी 2011
4 comments:
ओह सच में जीत जाना अरुणा आपके साथ हैं , बहुत दुख हुआ इनके बारे में जानकर ।
making a documentry on aruna's lesser life. contact 9818972973
..we all should should prey for her..every body knows every thing but can't do any thing for her...
Post a Comment