Sunday, March 30, 2008

संभल जाओ, अभी समय निकला नहीं

मुझे कोई चिंता नहीं क्योंकि मेरे घर में चौबीस घंटे पानी आता है और न ही पीने के साफ पानी के लिए दिल्ली जल बोर्ड के टैंक के आगे फैले हाथों में मेरा हाथ होता है। तो फिर भला मैं क्यों पानी बचाने के बारे में सोचूं? चाहे लोग लोग आपस में लङें या दो राज्यों में ही पानी के बँटवारे को लेकर खींचातनी चलती रहे, मेरे माथे पर शिकन क्यों आएगी? चाहे तीसरा विश्वयुद्ध पानी को लेकर ही क्यों न हो...... जिस दिन इस धरती की आखिरी बूंद भी खत्म होगी, उस दिन तक मैं कौन-सा ज़िंदा रहने वाली हूँ और फिर लोग ग्रह-तारों में तो पानी ढूंढ ही रहे हैं तो फिर मैं क्यों परवाह करूं? मेरी जेब में पैसे हैं कि मैं मिनरल वॉटर खरीद सकूं.....मुझे इस बात से क्या मतलब कि भारत के कई इलाकों में लोग गंदा पानी पीने को मजबूर हैं। गाङियों, आँगन और कुत्तों की धुलाई-सफाई हो जानी चाहिए और मेरे मनोरंजन के लिए वॉटर पार्क्स होने चाहिए.....इस बात से क्या फर्क पङता है कि देश के कुछ हिस्सों में अकाल के कारण लोग अकाल मौत मर रहे हैं। रोज़ दिन में दो-चार बार नहाने के लिए मेरे पास पानी है......फिर चाहे कहीं किसी को पसीने की बूंदों से ही अपनी प्यास बुझानी पङे, मेरे पास इस बारे में सोचने का वक्त ही कहां है.................

2 comments:

सुबोध said...

पानी िबन सब सून.अच्छा है..पहले ब्लॉग के िलए बधाई

राहुल गोयल said...

congratulations for writng ur first blog