Wednesday, November 25, 2009

आप भी सोचो, मैं भी सोचूं...


एक साल बीता.. जैसे बीता कोई पड़ाव.. लेकिन अब तक नहीं बदले हालात.. आज भी खिलवाड़.. कभी धमाका.. कभी हत्या.. नहीं लिया कोई सबक.. 26/11 का एक साल.. शहीद हुए कई जाबांज.. बचा लिया देश.. दे दी आहुति प्राणों की.. क्या हमने कुछ सीखा.. क्या हम बदले.. नहीं.. नहीं और सिर्फ नहीं इसका जवाब.. क्या गया मेरा.. क्या गया तेरा.. मैनें नहीं खोया किसी को.. मैं भूल गई वो दिन.. खौफ की वो रातें तीन.. आज कुछ नम भी हो जाऊं.. लेकिन कल फिर भूल जाऊं.. तो क्या यही है श्रद्धांजलि.. यही है शहीदों की शहीदी.. इसलिए दी उन्होंने जान.. इसलिए हुए वो कुर्बान.. क्या यही होना था अंजाम.. आतंकियों ने डराया.. गोलियों से धमकाया.. लेकिन डटे रहे वो वीर.. उनका भी कोई घर था.. एक परिवार..जो बैठा था इंतजार में.. सांसों को अपनी थामकर.. लेकिन नहीं लौटा.. कोई बेटा, कोई सुहाग और कोई पिता.. बहन आज भी रोएगी.. मां का दिल भर आएगा.. पिता का मन होगा भारी.. लेकिन केवल शहीदी पर नहीं.. उनके सपूतों की धुंधली याद पर भी.. देश के हालात पर भी.. मार-धाड़ मची है यहां.. भ्रष्टाचार का बोलबाला.. अपनी-अपनी बनाने में लगे सभी.. फिर क्यों शहीद हुआ मेरा बेटा.. अगर होना था यही.. ऐसा तो नहीं सोचा था.. बयानबाजी जोरों पर.. राजनीति का बन गया मुद्दा.. लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात.. क्यों नहीं बदलते हम.. मोमबत्ती जलाना ही नहीं श्रद्धांजलि.. वो महज भावनाएं.. बदलना है तो दिल से बदलें.. मजबूरी नहीं कर्तव्य.. देश ने दिया सब कुछ.. आप भी कुछ देना सीखें.. यही होगी श्रद्धांजलि.. ताकि.. फिर ना लौटे 26/11.. फिर ना हो कोई आंसू.. ऐसी जलाएं मोमबत्ती.. जैसें हों भावनाएं आपकी.. हैं तैयार आप..
आप भी सोचो.. मैं भी सोचूं..
26/11 के शहीदों को श्रद्धांजलि..