Tuesday, July 21, 2009

तुझ में नहीं मैं


तुझ में,
दूर कहीं
भीतर-बाहर की
गहराइयों में भी..
तलाशा खुद को
अपना वजूद
तुझ में ही कहीं
मन में,
दिल में,
और धड़कन में भी
ढूंढी अपनी आवाज
तेरी नजरों में,
ख्वाबों में,
कभी बातों में भी
सोचा मेरे जिक्र को
हंसी में,
नमी में,
तेरी खामोशी में भी
नहीं जाना अपने को
फिर भी
तलाशती रही
देर तक.. दूर तक
लौट आईं बेबस निगाहें
क्योंकि
तुझ में
मैं नहीं.. कहीं नहीं

अनु गुप्ता
21 जुलाई 2009

खिलौना जान कर तुम तो... (पहला भाग)


सुनो.. सुनो.. सुनो.. कस्बे में शुरु होगा एक नया तमाशा.. जिसमें आप ले सकते हो हिस्सा.. सुनो.. सुनो.. सुनो.. तो बन जाओ कलाकार और दिखाओ अपना हुनर..

ऐसे शुरुआत हुई कस्बे में नए तमाशे की.. इस तमाशे के लिए नया मंच तैयार हुआ और ढोल-नगाड़ों के साथ इसकी खबर पूरे कस्बे में फैल गई। जिसके बाद तमाशे में शामिल होने के लिए कई कलाकार आवेदन करने पहुंचे। मंच के साजों-सामान पर हजारों रुपये खर्च किए गए। तमाशे की तरह इसके कर्ता-धर्ता भी नए थे। सो उन्हें जरा भी अनुभव नहीं था। लिहाजा कर्ता-धर्ता ने तमाशे के कलाकारों को चुनने के लिए मुनीम जी और साहब जी की नियुक्ति की और निश्चिंत हो गए। तमाशे की बागडोर इन दो महानुभावों को मिलकर संभालनी है.. लेकिन दोनों में है अभिमान.. और दोनों ही कर्ता-धर्ता की नजरों में चढ़ना चाहते थे। इसलिए कलाकारों को चुनने में अपने आदमियों का खास ख्याल रखा। भई.. अब जब भाई-भतीजावाद चलेगा.. तो योग्य कलाकारों के साथ कुछ अयोग्य कलाकार भी आएंगे ही। लेकिन असली बात तो उन्हीं में है.. क्योंकि यही अयोग्य कलाकार ही तो तमाशे की असली बागडोर संभालेंगे। अब जनाब.. तमाशे के दौरान परदे के आगे और पीछे की कहानी मुनीम जी और साहब जी दोनों जानना चाहते हैं। सो उन्होंने ऐसे कलाकारों को भी चुना.. जो उनके विश्वासपात्र बनकर रहें।

खैर, जोर-शोर से तमाशा शुरु हुआ। कस्बे में चर्चा तो पहले से थी और कुछ उम्दा कलाकारों के साथ साथ मुनीम जी और साहब जी की मेहनत भी रंग लाई। देखते-ही-देखते तमाशा मशहूर होने लगा। कलाकारों में मित्रता हो गई.. हंसी-खुशी दिन बीतने लगे और तमाशे भी खूब जमने लगा।

लेकिन ये क्या.. अचानक परदे के पीछे का माहौल बदला सा नजर आने लगा। खुसर-पुसर शुरु हो गई.. कुछ बड़ा होने वाला है.. सभी कलाकार हैरान-परेशान.. अफवाहों का गरम बाजार.. क्या हुआ, क्या वाकई कुछ हुआ। अरे ये क्या.. ऐसा कैसे.. सही तो सुना है ना.. कहीं सुनने में कोई गलती नहीं हुई हो.. नहीं-नहीं बात तो सोलह आने सच है। ऐसा ही हुआ है.. मुनीम जी और साहब जी की आपस में नहीं बनती.. इसका असर तमाशे पर पड़ने लगा.. तमाशे की टीआरपी गिरने लगी.. तो कर्ता-धर्ता भी गंभीर हो गए.. अब मुनीम जी उनका दायां हाथ हैं और साहब जी बायां हाथ.. करें तो क्या करें.. अब ठीकरा तो कहीं न कहीं फोड़ना ही है.. तो चलो कुछ कलाकारों की छुट्टी कर दी जाए। वैसे भी कौन से तीर मार रहे हैं.. लो जी.. देखते ही देखते कलाकारों की छुट्टी कर दी गई।

...जारी है