Wednesday, September 16, 2009

बस.. कह देना


जब ना रहे साथ,
और
खत्म हो हर बात
कह देना चांद से..
उसकी
चांदनी हमने देखी नहीं
कह देना बाग से..
उसमें
फूल हमारा खिला नहीं..
जब घिर आए रात,
और
बिगड़े हों हालात
कह देना रास्तों से..
उनसे
हम गुजरे नहीं
कह देना साज से..
उसमें
हमारी आवाज नहीं
जब मर जाए जज़्बात
और
जिंदगी लगे आघात
कह देना चाहों से..
उन्हें
हमारी ख्वाहिश नहीं
और कह देना आहों से..
उनमें
हमारा दर्द नहीं
जब भूलें हर मुलाकात..
कह देना ये बात
बस.. कह देना

अनु गुप्ता
16 सितंबर 2009

Friday, September 11, 2009

खिलौना जान कर तुम तो... (अंतिम भाग)


तमाशे के दो पाटों के बीच पिसती जिंदगी.. चेहरे पर शिकन.. हाशिए पर सिमटी खुशियां.. कुछ यही कहानी हो गई तमाम कलाकारों की। अब यहां हमेशा अफवाहों का बाजार गर्म रहता। साहबजी और मुनीमजी की खींचातनी से सभी वाकिफ थे.. लेकिन फिर भी कभी ऐसा लगता कि.. सब कुछ ठीक ही चल रहा है। तमाशे की टीआरपी चढ़ती-उतरती.. कभी इस कलाकार की तारीफ होती.. तो कभी उस कलाकार को सबके सामने खून का घूंट पीना पड़ता। तमाशे में चल रही खींचातनी का गवाह एक चाय की दुकान है.. वहीं इस सबकी चर्चा होती.. कौन आने वाला है.. कौन जाने वाला है.. लेकिन अचानक कुछ ऐसा हुआ.. जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी.. कभी सपने में नहीं सोचा था.. परदे के पीछे एक और तमाशा हुआ.. खूब खबर उड़ी.. लेकिन इस तमाशे की गाज जिस शख्स पर गिरी.. वो बड़ा चौंकाने वाला था.. तमाशे के लपेटे में मुनीमजी आ गए.. मुनीमजी ही नहीं.. उनके साथ दो बड़े कलाकार भी.. कई बार तमाशे की कहानी बनाने-बिगाड़ने वाले लोग इस बार खुद कहानी बन गए.. लेकिन ये क्या.. तीनों कलाकारों को तमाशे से बाहर कर दिया गया.. जंगल में आग से भी तेज फैली ये खबर.. पर इस बार किसी के चेहरे पर शिकन नहीं.. कोई नहीं घबराया.. कहीं दबी हुई आवाज में खुशी नजर आती.. तो कहीं खुल्लमखुल्ला इसका जिक्र था..
इतना वक्त गुजर गया.. अब तक तमाशे के कलाकार इसके आदी हो चुके हैं.. उन्हें पता है.. यही उनकी कर्मभूमि है.. जिसने उन्हें पहचान दी.. अच्छी या बुरी.. और यही इस तमाशे की असल कहानी है.. यही इसका सबक.. कि.. ये कभी खत्म नहीं होने वाला.. टीआरपी बढ़े या फिर गिर जाए.. आना-जाना लगा रहेगा.. इसलिए तमाशे की शुरुआत कभी हुई हो.. कहीं भी हुई हो.. इसका कोई अंत नहीं.. ये अनंत है.. इसलिए मुस्कुराना भी जरूरी है.. भले उनकी डोर कभी किसी और के हाथ में हो...

इस सीरीज के पहले दो भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।


अनु गुप्ता
11 सितंबर 2009

झांसी की रानी की तस्वीर







पिछले दिनों अपने ब्लॉग पर झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की तस्वीर के बारे में बताया था। खबर के साथ झांसी की रानी तस्वीर भी थी। लेकिन वो तस्वीर सही नहीं थी। ई-पेपर भास्कर डॉट कॉम पर खबर के साथ जो तस्वीर प्रकाशित की गई.. दरअसल वो गलत थी। लेकिन ये खबर सही है कि.. इतिहास के पन्नों में झांसी की रानी की एकमात्र तस्वीर मौजूद है।
भोपाल के फोटोग्राफर वामन ठाकरे ने आज भी उस तस्वीर
को सहेजा हुआ है। एक निजी समाचार चैनल पर इस खबर
को दिखाया गया.. जिसमें लक्ष्मीबाई की भी दिखाई गई।
अपनी भूल को सुधारते हुए.. मैं अपने ब्लॉग पर झांसी की
रानी की वास्तविक तस्वीर दे रही हूं..
पिछली पोस्ट पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।
अनु गुप्ता
11 सितंबर 2009



Wednesday, September 2, 2009

मैं तरसती हूं..


बारिश की..
एक अलसाई सुबह में,
मैं तरसती हूं..
जागने में आनाकानी के लिए,
मां की एक झड़प के लिए,
भीगे पत्तों, गीली ज़मीन
पर..
अपना नाम उकेरने के लिए।
माटी की सौंधी महक,
तेल की महक के लिए,
एक गरम प्याला
अदरक-इलायची वाला..
और
मद्धम-सी धुनों के लिए।
मैं तरसती हूं अब
उस एक दिन के लिए..

अनु गुप्ता
2 सितंबर 2009

एक थी रानी !

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की कोई तस्वीर इतिहास में मौजूद नहीं है। स्केच या पेंटिंग के जरिए ही उनका चेहरा बनाने की कोशिश की गई है। हिंदी अखबार भास्कर की वेबसाइट पर हाल ही में एक तस्वीर प्रकाशित की गई.. जिसमें बताया गया कि.. वो तस्वीर झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की है.. तस्वीर के साथ उसका विवरण भी दिया गया है। मेरा निजी विचार यही है कि.. तस्वीर की सत्यता पर अब भी संशय है.. लेकिन उस तस्वीर को विवरण समेत मैं यहां पोस्ट कर रही हूं..

प्रस्तुत है विवरण-



अब तक आपने झांसी की रानी की तस्वीर पुस्तकों में स्केच या कैनवास पर ब्रश से उकेरे प्रयासों के सहारे ही देखा होगा, लेकिन भारत में रानी की लक्ष्मीबाई की मूल तस्वीर जिसको आप शायद ही कभी देखें हो।
जी हां ये है झांसी की रानी की 1850 में खींची गई मूल तस्वीर, जिसे सन 1850 में अंग्रेज फोटोग्राफर हॉफमैन ने लिया था। पिछले दिनों विश्व फोटोग्राफी दिवस यानि 19 अगस्त को पद्मश्री वामन ठाकरे द्वारा खींचे गए छायाचित्रों, कैनवास पे उकेरे चित्रों, लेखन कार्य और अन्य कलाकृतियों की प्रदर्शनी का आयोजन भोपाल में किया गया था। इस प्रदर्शनी में उनके विशेष आग्रह पे अहमदाबाद के एक एंटिक संग्रहकर्ता ने यह छायाचित्र भेजा था।
इस फोटो को श्री वामन ने प्रदर्शनी में दिखाकर लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया। क्योंकि लक्ष्मीबाई के मूल फोटो को आज तक शायद ही किसी ने देखा होगा। अभी तक ऐसा माना जाता रहा है कि इस दुनिया में रानी लक्ष्मीबाई की तस्वीर उपलब्ध नहीं है। लेकिन इस तस्वीर के एकाएक सामने आ जाने से यह साफ हो गया कि रानी की तस्वीर अभी भी उपलब्ध है।
साभार- भास्कर डॉट कॉम
वेबसाइट पर लेख के लिए इस लिंक पर क्लिक करें

अनु गुप्ता
2 सितंबर 2009