Wednesday, February 8, 2012

मैं हर उस पल घुटती हूं...!

मैं दिल्ली की एक आम लड़की हूं। सड़कों पर, बसों में, मेट्रो में और दफ़्तरों में नज़र आने वाली एक आम लड़की... जो हर उस पल घुटती है, जब किसी की बेशर्म नज़रें उसे घूरती हैं। वही आम लड़की जो तब-तब शर्मिंदा होती है, जब-जब उसे बेइज्जत करने वाले ढिठाई से हंसते हैं। मेरी कोई उम्र नहीं, न ही कोई नाम है। चाहे मैं 2 साल की नवजात हूं.. या 14 साल की नाबालिग... या फिर 80 साल की बेबस, इंसानियत को शर्मसार करने वालों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आप सबकी तरह अब तक यही मानती रही कि मैं आज़ाद हूं, मेरी भी ज़िंदगी है और मैं आधुनिक हूं। लेकिन ये सिर्फ एक भूल थी। आप मेरे लिबास, मेरी पढ़ाई या मेरे रहन-सहन पर मत जाइए। मेरी असली हालत से अखबार के पन्ने रंगे रहते हैं। हां, मैं ख़ुद को आज़ाद मानती रही। लेकिन फिर क्यों, जब तक मैं घर नहीं लौट आती, मम्मी को मेरी फिक्र सताती रहती है। बस में सफर करते वक़्त जब अचानक मेरी नज़रें अपने आस-पास के लोगों पर पड़ती हैं, तब पता चलता है कि किसी की गंदी नज़रें मुझे घूर रही हैं। घबराकर या कभी परेशान होकर जब मैं खिड़की से बाहर ताकती हूं, तो बाहर से कोई अपनी हरकतों से मुझे आंख बंद करने पर मजबूर कर देता है। फिर मैं क्यों मानूं कि मैं आज़ाद हूं। जबकि मैं जी भरकर अपने आस-पास की दुनिया को देख भी नहीं सकती। हां, आज मैं आधुनिक बनकर सड़कों पर बेफिक्र घूमने का दम भरती हूं। लेकिन, सच तो यही है कि मैं कभी बेफिक्र नहीं हो पाती। पैदल चलते हुए जैसे किसी के नापाक कदम मेरा पीछा करने लगते हैं। रोज़ ही ऐसे हालातों से मैं दो-चार होती हूं। कभी मेट्रो में सफर करते वक़्त पिता समान उम्र का कोई शख्स जब गंदी नीयत से घूरता है, तो मैं किस मानसिक वेदना से जूझती हूं.. ये आप समझ नहीं पाएंगे। ऐसा नहीं है कि मैंने विरोध करना नहीं सीखा। मैं विरोध करती हूं, ज़रूर करती हूं। लेकिन मेरे आस-पास खड़े कुछ 'महान' मुझे लेडीज़ कोच में सफ़र करने की 'महान' सीख देते हैं। उनके जैसे 'महान' लोग अक्सर लेडीज़ कोच में गेट पर कब्ज़ा जमाए खड़े भी नज़र आते हैं।
मेरे देश के कानून के तहत 'महिला की मर्ज़ी के खिलाफ फिजिकल रिलेशन बनाने को ही रेप की संज्ञा दी गई है।' पीछा करना, गंदी फब्तियां कसना, घिनौनी नज़रों से घूरना और भद्दे इशारे करना इसके खिलाफ कानून क्या कहता है, ये तो मुझे पता नहीं। लेकिन इतना जानती हूं कि आजकल ज़्यादातर मामलों में पुलिस मेरी शिकायतों को गंभीरता से लेती है। लेकिन फिर भी मेरे खिलाफ होने वाली हरकतें नहीं रुकतीं। जानते हैं क्यों, क्योंकि आपमें से कई लोग मेरा साथ नहीं देते। आप मेरे 'मामलों' में पड़ना नहीं चाहते, क्योंकि मैं आपकी रिश्तेदार या दोस्त नहीं हूं। या फिर शायद आप क़ानून के पचड़ों से बचना चाहते हैं। इसलिए मैं घुटती हूं, पल-पल मरती हूं....