Tuesday, June 24, 2008

"मेरी दिल्ली बदल रही है"



मेरी दिल्ली बदल रही है। जी नहीं...... ये मैं नहीं दिल्ली सरकार के होर्डिंग्स कह रहे हैं। दिल्ली ख़ासतौर पर साउथ दिल्ली की सड़कों पर आजकल आप भी दिल्ली के बदलने की कहानी देख सकते हैं। "मैट्रो, लो फ्लोर डीटीसी बसें, बेहतरीन मॉल्स..... हाई-वे..... सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पिटल....." और भी बहुत कुछ. दिल्ली वाकई बदल रही है। एक सरसरी नज़र से देखें तो दिल्ली सरकार के दावों में दम तो है। लेकिन ये दावे एक हवा से भरे गुब्बारे की तरह ही है.... सो कुछ दिन में हवा निकल ही जाएगी. वैसे विधानसभा चुनाव से थोड़ा पहले सरकार का दिल्ली के बदलने का दावा करना....... याद दिला देता है साल २००३ की..... इंडिया शाइनिंग के होर्डिंग्स जगह-जगह नज़र आ रहे थे.। अख़बारों और छोटे पर्दे पर तत्कालीन सरकार के ये दावे उसके अति आत्मविश्वास को दिखा रहे थे। एनडीए को यकीन हो चला था कि एक बार फिर वही सत्ता पर काबिज होंगे......लेकिन अफसोस कि इंडिया शाइनिंग का नारा एनडीए के भविष्य को शाइन नहीं कर सका। आज दिल्ली सरकार भी काफी हद तक ऐसे ही रास्ते पर चलती दिखाई दे रही है। इसमें कोई शक नहीं है कि.... दिल्ली बदली है..... उसका रंग-ढंग, चाल और जीवनशैली भी बदल गई है। मैट्रो वाकई एक अचीवमेंट है..... लेकिन क्या ये अचीवमेंट समाज के हर तबके की है? शायद नहीं..... और हो भी नहीं सकती, क्योंकि जब हाथ की उंगलियां ही बराबर नहीं होती तो.. समाज का हर व्यक्ति कैसे बराबर हो सकता है? सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पिटल दिल्ली की तस्वीर बदलते हैं....... लेकिन अगर अपने घर के पास के ही एक सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पिटल..... यानि राजीव गांधी सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पिटल की बात करुं तो आज तक उसकी कंस्ट्रक्शन ही पूरी नहीं हुई....... उदघाटन हुए लम्बा अरसा बीत चुका है..... लेकिन न तो वहां जरूरी मशीनें हैं और न ही डॉक्टर्स। नगर निगम के स्कूलों की हालत किसी से नहीं छिपी।

सरकार ने मिड डे मील योजना शुरु की ताकि ज्यादा से ज्यादा बच्चे स्कूल चले आएं..... ऐसा शायद हुआ भी....... एक वक्त के निश्चित खाने का लालच बच्चों को स्कूल तक खींच लाया..... लेकिन उन्हें पढ़ाई के लिए लालची नहीं बना पाया..... ये राय दिल्ली नगर निगम के सभी स्कूलों पर लागू नहीं होती.... हां, ये बात अलग है कि ज्यादातर स्कूलों की हालत बदतर है..... जहां इंस्पैक्शन से पहले टीचर्स बच्चों को सिलेबस की कुछ ख़ास बांते रटा देते हैं..... ताकि खुद टीचर्स की क्लास न लगे।

दिल्ली बदल रही है...... आप दूर क्यों जाते हैं..... यमुना नदी को ही देखिए, कितना बदल गई है। पहले उसमें पानी थोड़ा और ज्यादा था....... अब और कम हो गया है.... दुख यही है कि दिल्ली तो बदल गई पर दिल्लीवाले आजतक नहीं बदले..... लिहाजा उनकी खोखली श्रद्धा का खामियाजा यमुना को भुगतना पड़ रहा है। हां, ये बात अलग है कि यमुना की सूरत बदलने के नाम पर अब तक कई करोड़ रुपये हज़म हो चुके हैं।

दिल्ली तो बदल ही रही है..... बदलाव को कौन रोक सकता है...... प्रकृति का स्वाभाविक नियम है बदलाव.... और अब तो दिल्ली को और तेजी से बदलना पड़ेगा, आखिर २०१० में कॉमनवेल्थ गेम्स जो होने वाले हैं...... कम से कम इसी बहाने कुछ लोगों को रोज़गार तो मिला ही हुआ है..... एशियाड विलेज (जहां ये खेल होने हैं) की कंस्ट्रक्शन के कारण.... सो दिल्ली चाहे जितनी बदले....... इन लोगों के दिन तो फिलहाल बदले ही हुए हैं......