Monday, April 7, 2008

खेल, खबरों का......

बचपन में भाई के साथ घर-घर और दुकान-दुकान जैसे खेल खेलती थी। कुछ और बङा होने पर खेलों का दायरा भी बढ़ गया और आज मैं एक नया खेल सीख रही हूँ- खबरों से खेलना। ये नया खेल शायद आज सबसे ज्यादा खेला जाता है, हो सकता है क्रिकेट से भी ज्यादा खेला जाता हो। आखिर २४ घंटे के न्यूज़ चैनल्स की बाढ आई हुई है.... और फिर टीआरपी की दौङ में भी बने रहना है। तो क्या दिखाया जाए चौबीस घंटे, कहां से आएंगी इतनी खबरें और अगर खबरें आ भी जाएं तो जरूरी तो नहीं कि लोग उन्हें पसंद भी करें। आखिर सवाल टीआरपी का जो ठहरा। किसानों की हालत क्या है इसे भला कौन जानना चाहेगा? लेकिन हाँ, करीना के लव अफेयर्स में सभी की दिलचस्पी है। छोटी से छोटी और बेहद मामूली बात को कैसे भुनाया जाए, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से बेहतर कोई नहीं जानता। मैं भी इसी मीडिया का एक हिस्सा हूँ.......मेरी ही तरह यहां ज्यादातर लोग आते हैं अपने विचारों से, अपने काम से परिस्थितियों को बदलने का सपना लेकर.... लेकिन टीआरपी की दौङ सभी के क्रांतिकारी विचारों को बदल डालती है। आज बहुत कम लोग ऐसे हैं जो सच में खबरों से खेल नहीं रहे बल्कि पत्रकारिता कर रहे हैं। वो लगे हुए हैं एक कोशिश में कि.... किसी तरह इस दौङ से अलग पत्रकारिता का वज़ूद बनाए रखें चाहें उनका अपना कोई अस्तित्व न रहे।