तुझ में,
दूर कहीं
भीतर-बाहर की
गहराइयों में भी..
तलाशा खुद को
अपना वजूद
तुझ में ही कहीं
मन में,
दिल में,
और धड़कन में भी
ढूंढी अपनी आवाज
तेरी नजरों में,
ख्वाबों में,
कभी बातों में भी
सोचा मेरे जिक्र को
हंसी में,
नमी में,
तेरी खामोशी में भी
नहीं जाना अपने को
फिर भी
तलाशती रही
देर तक.. दूर तक
लौट आईं बेबस निगाहें
क्योंकि
तुझ में
मैं नहीं.. कहीं नहीं
अनु गुप्ता
21 जुलाई 2009
6 comments:
लौट आईं बेबस निगाहें
क्योंकि
तुझ में
मैं नहीं.. कहीं नहीं
bahut khub, kafi dard bhara hai aapki bhavnao me.
दिल से लिखी गयी कविता...दिल में घर कर जाती है ...
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
भावपूर्ण रचना.
sunder bhavbhari rachna badhai
कुछ उलझी कुछ सुलझी
लेकिन कुछ अनसुलझी
फिर भी सबकुछ कह जानेवाली
एक कविता
gehrai bato ko bahut pyaar se saza ke, shabd ko aaiyna bana ke didaar kara deya hai is kavita ne.
bahut hi achhi poem hai.. or photo selection bhi bahut zabardast hai.
Post a Comment