Sunday, March 14, 2010

मेरे शहर में कितना सन्नाटा है


गोली की आवाज नहीं..
ना कोई धमाका है।
तुम्हारे शहर को देखा
तब सोचा..
मेरे शहर में कितना सन्नाटा है।
जाने कैसे जीते हैं..
तुम्हारे शहर के लोग,
एक के बाद एक
धमाका खुद को दोहराता है।
ये मेरी शिकायत नहीं,
ना कोई गिला मुझे..
अपने दायरे में खुश हूं मैं,
लेकिन..
तुम कैसे जीते होगे..
बस.. यही सवाल
मन को बहुत डराता है।
तुम्हारे शहर को देखा
तब सोचा..
मेरे शहर में कितना सन्नाटा है..
मेरे शहर मे कितना सन्नाटा है।


अनु गुप्ता
14 मार्च 2010

6 comments:

sonal said...

बहुत खूबसूरत नज़्म ...धमाको से हुए सुन्नं ऐसे कान के अजान तक सुनाई नहीं देती

Ashish (Ashu) said...

बहुत खूबसूरती से आपने दिल की बात कह दी..आभार
Ashu

रानीविशाल said...

Bahut Sundar rachana....Shubhkaamnae.
Aap word verification bhi hata dijiyega tipaani karane walo ko aasani ho jaaegi.
http://kavyamanjusha.blogspot.com/

M VERMA said...

तुम्हारे शहर को देखातब सोचा..
मेरे शहर में कितना सन्नाटा है।
सन्नाटे भी कभी कभी बहुत डराते है
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

Unknown said...

gr8 one....
really...

dinesh pandey said...

achha likha hai...