Tuesday, November 15, 2011

शब्द



शब्द..
कहां हैं आज !!
जिन्हें कागज़ पर उकेरकर
मन हल्का होता.
शब्द...
जो बनते आवाज़
कभी ख़्याल...
तो कभी
डायरी में छिपी याद.
शब्द ही
बनाते थे रिश्ता
अब बन गए हैं...
अजनबी
हां... वही शब्द
जाने कहां हुए गुम !!!
क्यों हुए गुमसुम
अब ढूंढू कहां ?
न यहां, न वहां
मेरी ही... तरह
खामोश हुए सब
वीरान हुआ मन
हां, मेरी ही तरह
इसलिए,
देखते हैं लेकिन...
दिखता नहीं
सुनते हैं लेकिन...
सुनाई देता नहीं
क्योंकि...
खो गए हैं
शब्द


अनु गुप्ता

16 नवंबर 2011

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